अगर कलम न होती तो
🙏🏻शीर्षक - अगर कलम न होती जाने कितनी बाते अधूरी रह जाती, जाने कितने गीत अधूरे रह जाते l मन की बात मन मे ही घुट जाती, अंतस की पीड़ा उढ़ेलने वाले न होते l अगर कलम न होती तो.... मानो पंछी के पंख कुतर जाते, इंद्रधनुष के रंग बिखर जाते l दिल के अरमान हवा हो जाते, दिलों के जज्बात पन्नो मे उतारें न जाते l अगर कलम न होती तो....... किस्से न होते, फ़साने न होते, अनुभवों को पिरोने वाले न होते l पुष्प होते गुलशन मे लाखों, पर उनपे मंडराते भौंरे दीवाने न होते, अगर कलम न होती तो....... हुस्न तो होता पर प्रेयसी को, चाँद की उपमा देने वाले न होते l गुमनाम होते सारे किस्से, कहानियाँ, इनके सुनाने वाले न होते l अगर कलम न होती तो.... सुबहो -शाम, मौसम का हर अंदाज, कभी तोता - मैना को रुमानी न लगते l बागों मे बहारे तो जरूर आती, बहारो का अंदाजे बयाँ करने वाले न होते l अगर कलम न होती तो........ टूट जाते जाने कितनो के हौसले, गर उनके पास हौसला देने वाले न होते l वेद,श्रुतियाँ गुमनामी के अंधेरों मे खो जाती, आज श्रुत परम्परा कहाँ तक साथ निभाते l अगर कलम न होती तो........ बहुत कुछ जहाँ मे सबके लिए अंजाना होता, न ख़त होत