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Showing posts from August, 2023

विडंबना

💐विधा - लघुकथा शीर्षक - विडंबना आज भाई की हालत  को देख कर रश्मि को बहुत तकलीफ हुई l उसे देखकर ऐसा लगा जैसे कि इस दुनिया में उसका कोई नहीं है l लग रहा था कि वह बहुत कुछ कहना चाहता है पर जानती है,उसे यह कहना नहीं आता l उसे बस अपना गुस्सा दिखाना आता है प्यार दिखाना तो उसने कभी सीखा ही नहीं l पर उसकी अनकही बातों को समझना आता है मुझे l उसका दिल कर  रहा था जैसे गले से लगाउ और उसके सिर पर हाथ फेर कर कहुँ की, चुप हो  जा, मैं हूं ना तेरी बड़ी दीदी  l पर वह ऐसा नहीं कर सकती, आखिर उसी की तरह वह भी तो थीl अपनी ब्यावनाओं को जाने कैसे रोक लेती थी l बाबूजी के रहते हुए उसकी ऐसी हालत उसने कभी नहीं देखी थी l वह सोच रही थी की "वह तो मुझसे भी ज्यादा बुड्ढा लग रहा है l आंखें धसी धसी गाल पिचके हुए बाल दाढ़ी मूछ सभी पके हुए l एक पल को पिताजी की याद आ गई l उनके रहते कभी मेरे भाई का रुतबा कम नहीं हुआ था l पर आज देखकर ऐसा लग रहा था कि उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है l आने के थोड़ी देर बाद उसने कहा था " जल्दी से बांध दे " बच्चे घर पर अकेले हैं उसकी मां अपने भाई के यहां गई है l " उसकी तबीय

तिरंगा

🇮🇳शीर्षक - तिरंगा🇮🇳 तीन रंगों से बना तिरंगा, हम सबका सम्मान है l इसकी शान न जाने देंगे, यह हमारा अभिमान है l

चंद्रयान 3

🌙🌜शीर्षक - चंद्रयान 3 भारत को पुनः है गौरवान्वित किया चंद्रयान 3 ने दिखाया अपना दम ख़म l चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुच विश्व को जताया भारत नहीं किसी से कम l चाँद पर पहुंचा हमारा भारतीय रोवर, साथ में अपने लेकर प्रज्ञान सा यंत्र l सतत-अथक प्रयास देती सफलता, विश्वगुरु ने सिद्ध कर दिखलाया मंत्र l पहुंचते ही शशि की धारा पर इसने, आरम्भ कर दिया है अपना कार्य l अनसुलझे अनेकों रहस्यो व तथ्यों को, प्रत्यक्ष करके बनेगा सबका सिरमौर्य l सारी रात्रि दूर क्षितिज में बैठकर, मंद -मंद मुस्काता था चंदा मामा l प्रज्ञान घूमेगा अब चंदा की गोद में, जिसने भारत का महान तिरंगा थामा l वैज्ञानिको ने बढ़ाया भारत का सम्मान, प्रज्ञान हर पग में छोड़ेंगा भारतीय निशान l भारतीय इतिहास में जुड़ा स्वर्णिम पन्ना, सदा रहेगा विश्व में मेरा भारत महान l लोकेश्वरी कश्यप मुंगेली, छत्तीसगढ़ 26/08/2023

नसगपांचमी

💐शीर्षक - नागपंचमी💐 पर्व विशेष है नागपंचमी का, चलो नाग देव को मनाते है l दुष्ट मुसको से वे रक्षा करते, आभार हेतु लाई दूध चढ़ाते है l भोले का विशेष यह आभूषण, शिव गले से अपने इसे लगाते है l खेत - खार में निवास करे यह किसानो के मित्र कहलाते है l अनु इनके विषय में कितना कहे, हजार - हजार तो इनकी प्रजाति है l गउहा,डोमि,करैत,कोबरा विषैले होते, अनेकों विषहीन भी तो होते है l अनोखे होते ये सरीसृप प्राणी, स्व रक्षा हेतु लोगो को डराते है l फुफकार कर भय का संचार करते, विषधर भी तो ये कहलाते है l विशेष विचित्र इनकी जीवन शैली, हर स्थान पर यह पाये जाते है l हानि नहीं कभी तुम हमें पहुचाओ, नागपंचमी में यही प्रार्थना करते है l लोकेश्वरी कश्यप मुंगेली, छत्तीसगढ़ 21/08/2023

वो स्त्री है

💐शीर्षक - वो स्त्री है बड़ा कोमल सा होता है स्त्री का मन, निश्चल होता है जैसे हो कोई दर्पण  l करती अपनी हर जिम्मेदारी को पूरी, करती है जो हँसकर सर्वस्व समर्पण lवो स्त्री है.....वो स्त्री है...... सरल सा सीधा साधा होता है उसका मन, बिल्कुल तुम्हारे हमारे ही मन की तरह  l उसका मन भी बस वही सब कुछ चाहे, जो तुम्हारे लिए चाहे तुम्हारा अपना मन lवो स्त्री है.....वो स्त्री है...... एक सुंदर,सरल,सुघड़, सुखमय जीवन, बोलो क्या नहीं चाहता है यह तुम्हारा मन l तुम अपने सपनों की खुली उड़ान चाहते, उसका मन भी अपने सपने पूरे करना चाहे lवो स्त्री है.....वो स्त्री है...... स्त्री का मन खुल कर रोना -हंसना चाहे l अपने अरमानों के परों के लिए उड़ान चाहे l सच्चे प्यार का बस सच्चा एहसास चाहे l घर परिवार में अपना भी अधिकार चाहे lवो स्त्री है.....वो स्त्री है...... अपना खोया हुआ वह सम्मान चाहे l कलंकित करने वालों हेतु तलवार चाहे  l करे जो सच्चा न्याय वो परवरदिगार चाहे l अपनी क्षमता की गहराई को नापना चाहे lवो स्त्री है.....वो स्त्री है...... सास-ससुर का स्नेह भरा लाड दुलार चाहे l जो सदा साथ निभाए ऐसा परिवार चाहे l जो

सुन लो प्रिये (हास्य व्यंग कविता )

💐 शीर्षक - सुन लो प्रिये जालिम सुनकर तेरी खड़गती हंसी, स्कूल में लाज भी लजा  जाती है l चंद्र ग्रहण से तेरे मुखड़े पर, कुछ उजली कुछ स्याह स्याह सी, दंत पंक्तियों की सजी लड़ी में, बादल बिजली एक साथ नजर आती है  l तेरी मस्त निगाहों का जादू, क्या क्या कमाल दिखाती है  l तेरी नजरों की क्या तारीफ करूं, तेरी तिरछी तिरछी नजरें प्रिये एक पूरब तो एक पश्चिम में, एक साथ दो -दो तीर चलाती है l कहां से सीखा है यह अंदाज ए बयां, मुझे भी कुछ बतलाओ प्रिये l सुना है चांद निकल आया है छत पर, अपनों से क्या, कैसा शर्माना अब, सर का ताज जरा सा सरका दो तो, हम भी चांद का दर्शन कर ले प्रिये l चलो आज होटल खाना खाने चलते हैं, एक नहीं तूने कई बार जिद्द की प्रिये l तू बड़ी भोली है तुझे कैसे समझाऊं, मुझ में हिम्मत नहीं कि तुझे कुछ बताऊं, कैसे कह दूं तुम ही बताओ प्रिये कि जंगल के महाराजा जैसे तु खाती है  l फैशन तेरे अजब-गजब दुनियाँ से निराले हैं, फैशन के नाम पर तूने जाने क्या पहन डाले है l तुझे देखकर ऐसा लगता है प्रिये जैसे ताजमहल पर किसी ने टीन टप्पर डाले हैं l तेरी आशिकी का बोझ अब उठा नहीं सकता,