खेल / खिलौने
🐈🐘खेल /खिलौने
खेल और खिलौने दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैंl खिलौनों की उपयोगिता तभी है,जब उसे खेला जाए l हम खिलौने बनाते व खरीदते ही इसीलिए हैं,ताकि बच्चे उन्हें खेले और उससे खेल कर आनंद का अनुभव करें l जब बच्चे खेलते हैं तो हमें भी आनंद का अनुभव होता हैl लेकिन क्या बच्चे खिलौने से खेलते हुए मात्र आनंद का अनुभव ही करते हैं या इससे अधिक कुछ और इसका महत्व है? जी हां! बिल्कुल सही सोचा आप सब ने l खिलौनों का महत्व केवल आनंद तक ही सीमित नहीं है l खिलौने बच्चों के मात्र खेलने के लिए नहीं होते हैं वरन बच्चे खिलौनों से खेलते समय आनंद का अनुभव करते हैं और साथ ही साथ बहुत सारी चीजें व अवधारणाएं भी सीखते रहते हैं l खेल के माध्यम से बच्चे बहुत सारी चीजों को जोड़ते हैं, तोड़ते हैं, अलग करते हैं,मिलाते हैं इस प्रकार से है यह जाने की कोशिश करते हैं कि यह चीज आखिर बनी कैसी हैं ? खेल खेलते समय बच्चे बहुत सारी गणितीय अवधारणाएं भी सीखते हैं l जैसे बहुत सारे खिलौने रखे हुए हैं तो कौन सा खिलौना बड़ा है, कौन सा खिलौना छोटा है l खिलौनों के माध्यम बच्चे छोटा-बड़ा, हल्का -भारी , मोटा -पतला, कम -ज्यादा खुद ही सीख जाते हैं l खिलौनों के माध्यम से बच्चे हिंदी के बहुत सारे शब्द व अवधारणाएं भी सीखते हैं l बच्चे खिलौनों से खेलते समय आपस में बहुत सारी बातें व क्रियाये भी करते हैं l इन के माध्यम से बच्चे बहुत सारी चीजों को अनुभव करते हैं वह सीखते रहते हैं l खेल खिलौनो के माध्यम से बच्चों में शारीरिक, बौद्धिक,सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विकास भी देखने को मिलता है l साथ मिलकर काम करना, आपस में सहयोग करना तालमेल बिठाना( सामंजस्य ), बहुत सारे नियम व नियमों का पालन करना बड़ी आसानी से सीखते है l खिलौनों से खेलते हुए बच्चे बहुत अच्छी तरीके से विभिन्न परिस्थितियों व चीजों का अंदाजा लगाने का गुण सीखते, समझते हैं l बच्चों में विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों को व घटनाओं को समझने व उनका विश्लेषण करने उनका निष्कर्ष निकालने व उनके पीछे के कारण को समझने की क्षमता का विकास होता है l जो बच्चों को भविष्य में काम आती है l खिलौनों से खेलते हुए बच्चे उसके पीछे की मैकेनिज्म को समझने की कोशिश तो करते ही हैं साथ ही खेलते समय बच्चे उसे खेलने के लिए विभिन्न तर्क का इस्तेमाल करते हैं, नियमों का पालन करते हैं, मैं स्वयं कर कर के खिलौनों के माध्यम से नई आवधारणाएं व चीजें सीखते रहते हैं l खिलौनों से खेलते हुए बच्चे स्वयं अपने सिद्धांत गढ़ते हैं, उनमें परिवर्तन करते हैं l खिलौनों से खेलते समय छोटे बच्चों की हाथों की उंगलियों का आंखों का समन्वय होता है l खेलने के लिए बच्चों को अपने हाथों की उंगलियों का, पैरों का,आंखों का समन्वय स्थापित करना सीखते हैं l चीजों को उठाने, पकड़ने, रखने, खींचने,धकेलने, लुढ़काने, घसीटने, घुमाने इत्यादि का अभ्यास व अवधारणा बच्चे खिलौने से खेलते हुए ही सीख जाते हैं l विभिन्न प्रकार के सामाजिक व्यवहार, रीति रिवाज, बोलचाल के व्याकरण के नियम बच्चे अनजाने में ही खिलौने से खेलते हुए बातें करते हुए विभिन्न किरदारों का अभिनय करते हुए ही सीखते हैं l विभिन्न रंगों व वस्तुओं की पहचान उनके गुणों को बच्चे खिलौनों से खेलते हुए खुद से करके व देखते हुए सीखते हैं l यह सारी चीजें बच्चों के भविष्य में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं l इस प्रकार से हम मानते हैं कि खिलौने ना केवल बच्चों के खेल व आनंद का पर्याय है वरन खिलौनों से खेलना बच्चों को विभिन्न मूर्त एवं अमूर्त चीजों, अवधारणाओं, संक्रियाओं, घटनाओं, परिस्थितियों को समझने व सीखने का माध्यम भी होते हैं l
उदाहरण के लिए
1.
जब बच्चा गुड्डा गुड़िया से खेलता है l उस वक्त वह गुड्डा गुड़िया की माता पिता की भूमिका निभा रहा होता है l उनके घर में बड़े जिस प्रकार से बोलते हैं हावभाव करते हैं बच्चा भी उन्हीं चीजों को कॉपी करने की कोशिश करता है l यह खेल खेलते समय अक्सर बच्चे एक-दूसरे के घर मेहमान बन कर आते जाते हैं l इस दौरान हमने बच्चों को यह कहते हुए सुना होगा कि मेहमान यहां बैठेंगे आइए बैठिए उठिए आपके लिए पानी लाऊं इस प्रकार से बच्चे विभिन्न सामाजिक गुणों को खेल के माध्यम से सीखते हैं l
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