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Showing posts from June, 2023

फूलों का संसार

शीर्षक - फूलों का संसार फागुन में फूले है पलाश, लगे जैसे हो जंगल की आग  l गर्मियों में गुलमोहर फूले, दहके जैसे लाल लाल अंगार l मदार फूले है हर मौसम में, करते इससे देवी का श्रृंगार l सदाबहार फूले सदा सुहागन, इसकी करूं क्या कितनी बात l धतूरे और आंक के फूल से, सदा प्रसन्न रहते भोलेनाथ l पीले - पीले फूल कनेर के, करे भोले का सुंदर श्रृंगार l फुल प्रतीक है उल्लास का, जीवन में सुगंध भरी मिठास का  l इनको देख कर  खिल जाते हैं, मुरझाया मुखड़ा उदास का l फूल खुशियां और सुगंध देकर, चुपके से झड़ जाते हैं  l इनकी कुर्बानी से ही तो भैया, स्वादिष्ट फल हमें मिल पाते हैं  l फूलों से हम सब प्रेरणा लें, जीवन में सदा मुस्कुराने का l भरें सबके जीवन में हर्ष उल्लास, प्रेम सुगंध दे अलविदा होने का l लोकेश्वरी कश्यप 27/04/2023

चलव संगी स्कूल जाबो

💐स्कुल चलो अभियान के अंतर्गत छत्तीसगढ़ी गीत शीर्षक - चलव संगी इस्कूल जाबो चलव संगी ईस्कूल जाबो (2) नवा नवा संगी साथी बनाबो (2) पढ़ लिख के हम नाम कमाबो चलव संगी इस्कूल जाबो सुने हन अब्बड़ खेलउना आये हे मेडम गुरूजी मन हमरबर लाये हे खेलउना खेलबो अउ गीत गाबो खेल खेलबो मजा उडाबो चलव संगी इस्कूल जाबो (2) इस्कूल म कहानी के अब्बड़ किताब हे सजे सजाये कक्षा म चित्र के भरमार हे चित्र बनाबो अउ ओला सजाबो अपन मन मर्जी के रंग लगाबो चलव संगी इस्कूल जाबो (2) मस्ती मजा बढ़िया शिक्षा इहा हे निशुल्क कपड़ा किताब इहा हे सुग्गघर सर्वांगीण स्वस्थ सेहत बनाबो गरम पौष्टीक मध्यान्न भोजन खाबो चलव संगी इस्कूल जाबो (2) खेल खेल म ज्ञान विज्ञान इहा हे सर्वांगीण शिक्षा अनुशासन इहा हे पढ़ना सीखबो लिखना सीखबो अपन जिनगी  गढ़ना सीखबो चलव संगी इस्कूल जाबो (2) गीतकार : लोकेश्वरी कश्यप शासकीय प्राथमिक शाला सिंगारपुर विकासखंड -मुंगेली जिला -मुंगेली (छत्तीसगढ़ ) 28/06/2023

आज का इंसान

💐शीर्षक - आज का इंसान पाप क्या पुण्य  क्या जाने है सकल जहान फिर भी जाने किस भरम में खोया है इंसान चेहरे पर चेहरा लगाये फिरता है सारी उमर ईश्वर को भी छलना चाहे देखो मुर्ख इंसान मुखिया बना फिरता जमाता  सबपर रौब जाने किस अकड़ में रहता हरदम नादान औरों की तारीफ,खुशी से जल भून जाता चाहता सुनना हरदम अपना ही गुणगान औरों की खुशी में खुश होने का गुण भूल बैठा है करने लगा झूठा अभिमान स्वयं को महान सबसे श्रेष्ठ समझता अपने मन की करता रहता बनता विद्वान् औरों को अपमानित करता उडाता मजाक काम कुछ करना नहीं देखे ऊँचे सपने हजार खुश होता बनता अपने मुँह मिया मिट्ठू विनम्रता,सदभाव भूल बैठा आज इंसान अब भी समय है खुश रहो और खुश रखो पवित्र मन से दो सबको उनके हक का सम्मान तुम्हारे जैसे ही तो सबको अधिकार मिले ईश्वर ने बनाया उनको भी तुम्हारे जैसे ही इंसान लोकेश्वरी कश्यप मुंगेली, छत्तीसगढ़ 29/06/2023

बहुत याद आता है बचपन की बारिश का जमाना

💐शीर्षक - बचपन की बारिश का जमाना बहुत याद आता है बचपन की बारिश का जमाना ना थी कोई चिंता, न झिझक किसी बात की, छतरी में पानी भर के फिर  उसे ओढ़ना, वो रिमझिम फुहारों का गिरना, गिरती फुहारों में खुश हो के भीगना l साथ भीगने के लिए साथियों को आवाज देकर बुलाना बहुत याद आता है बचपन की बारिश का जमाना पाठशाला जाते समय बारिश में बच कर जाना, छुट्टी होने पर मजे से भीगते भीगते आना, रेनकोट का उस समय कहां था बोलबाला, माँ,दादी,नानी भी तो गाती थी सावन में गाना, रंग बिरंगी पन्नीयों में दो-दो लोगों का छुपकर जाना l बहुत याद आता है बचपन की बारिश का जमाना  l बहते पानी में नन्हें हाथों से बांध का बनाना, बनाकर कागज की कश्ती पानी में बहाना, भीगते हुए आंगन गली में खिलखिलाना, नदी, तालाबों में गिरते पानी में गोते लगाना, आम, पीपल,बरगद के पेड़ों पर झूला डाल झूलना, बहुत याद आता है बचपन की बारिश का जमाना l तब कहां बुरा लगता था कीचड में खेलना, बड़ा मजा आता था पानी में छपा छप चलना, हमें तो छतरी भी बोझ लगती थी बारिश में, भीगने का कोई ना कोई बनाते थे बहाना, बारिश हमें हर मौसम से लगता था सुहाना...