वेश्या (एक वेदना )

🙏🏻शीर्षक - वेश्या / बेटियाँ 


बोलो आज कहां सुरक्षित है नारी ,
हर जगह लुट रही अस्मिता नारी की l
चिंता करते नहीं लोग बदनियति बीमारी की,
वाणी,नजरों,हाथों लूटते अस्मिता नारी की l


आज कोई कृष्ण बनकर आता नहीं बचाने,
पर आ जाते हैं सब अबला नारी को सताने l
हर कोई दिखता तैयार अपना एहसान जताने,
भूलते जा रहे लोग आज यहाँ रिश्ते निभाने l


  हर गली, चौक - चौराहे पर झुंड के झुंड,
  मानव वेश में मिल जाते गिद्ध और सियार l
अंदर तक चुभती जाती है आत्मा में,
वहशी निगाहें लार टपकाती गंदी मुस्कान l


दिन के उजालों में लगते मसीहा और भगवान,
शाम ढलते ही बन जाते हैं वहशी हैवान l
शर्म की मारी कह न पाती लुटती रहती घूँघट में
घायल होती आत्मा जब लूटता है तन शैतान l

खुद को सुरक्षित न पाती जब शर्म का घूंघट डाल,
जलता है उसका तन और मन नरक की आग l
लुटना ही है उसकी नियति जब वह मान लेती है,
शर्म का घुंघट हटा बाजार में खुद को झोंक देती है l


बेशर्मी की दुनिया में नाम उसका बदनाम होता है l
आत्मा रोती उसकी वैश्या का जब ठप्पा लगता है l
बाहरी मेकअप ( श्रृंगार)से मन के भाव छुपाती है l
जीवन की नीरसता को झूठी मुस्कान से सजाती है l


बेटियां तो हम सबके जीवन का आधार होती है l
बेटियां तो हम और तुम जैसी ही शालीन होती हैं  l
बेटियां वेश्या बनने पर फिर क्यों मजबूर होती है l
क्या बेटी मां के पेट से वेश्या बनकर पैदा होती हैं  l


बेटियों को उनके हक का मान और सम्मान दो l
कुछ अपने बेटों को भी अच्छे वाले संस्कार दो  l
बेटियों की मासूमियत मत छीनो उनको प्यार दो l
जब भी उसे जरूरत पड़े कृष्ण बन के साथ दो l


लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली, छत्तीसगढ़
09/01/2023

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