ऋतु बसंत
💐शीर्षक - ऋतु बसंत
ऋतु बसंत मन भावना,चलता कितने दांव l
मधुर कुंजती कोयली,बैठ पेड़ की छाँव l
सुख मिले मधुर माधुरी,मनमीत लगे धूप l
कंचन काया कामिनी,सब जन,रंक व भूप l
धरती ओढ़े पीवरी, बसंत का श्रृंगार l
चली है नदी मचलती,निर्मल लेकर धार l
श्रृंगारित नव यौवना, खुश है दर्पण देख l
धरा स्वरूप निहारती,गगन रहा है देख l
उपवन पुष्प आच्छादित, बचा न कोई कुंज l
सभी जन गण आल्हादित,भौंरे करते गूंज l
निर्मल नभ बिन दामिनी,निलांबर चहुँ ओर l
शोर करें सब चीड़िया,है सारी चितचोर l
विरही का तन जारती, रूप बसंती घोर l
अपना मन है मारती, कर के वह तप घोर l
स्वपति संग रति नाचती,होकर भाव विभोर l
मोर, पपीहा,कोयली,करते मिलकर शोर l
मन में सुन्दर भावना, रखे बसंत बहार l
पूरी हो हर कामना, करे सद व्यवहार l
जहाँ नजर रति डालती,धर वसंत का हाथ l
शील उतारे आरती,मधुऋतु माधव साथ l
लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली छत्तीसगढ़
21/01/2023
मधुर कुंजती कोयली,बैठ पेड़ की छाँव l
सुख मिले मधुर माधुरी,मनमीत लगे धूप l
कंचन काया कामिनी,सब जन,रंक व भूप l
धरती ओढ़े पीवरी, बसंत का श्रृंगार l
चली है नदी मचलती,निर्मल लेकर धार l
श्रृंगारित नव यौवना, खुश है दर्पण देख l
धरा स्वरूप निहारती,गगन रहा है देख l
उपवन पुष्प आच्छादित, बचा न कोई कुंज l
सभी जन गण आल्हादित,भौंरे करते गूंज l
निर्मल नभ बिन दामिनी,निलांबर चहुँ ओर l
शोर करें सब चीड़िया,है सारी चितचोर l
विरही का तन जारती, रूप बसंती घोर l
अपना मन है मारती, कर के वह तप घोर l
स्वपति संग रति नाचती,होकर भाव विभोर l
मोर, पपीहा,कोयली,करते मिलकर शोर l
मन में सुन्दर भावना, रखे बसंत बहार l
पूरी हो हर कामना, करे सद व्यवहार l
जहाँ नजर रति डालती,धर वसंत का हाथ l
शील उतारे आरती,मधुऋतु माधव साथ l
लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली छत्तीसगढ़
21/01/2023
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