ओसकण

💐शीर्षक - ओसकण


ओस के भार से सारे,झुक झुक जाए नम पर्ण l
जब पड़े सूर्य किरणे, चम चम चमके ओस कण l


शीतल सुखदाई ठंड, निशा बनाएं ओस कण l
गिरती है यह रात भर,तरुवर के पर्ण पर्ण l


चमके ऐसे ओसकण,ज्यु मुक्ता के सारे कण l
झारे अंबर रात भर, औषधी रूप ओसकण l


शांति देते है मन को, तन पर पड़ते ओस कण l
रात भर जागे रोये, दिन चढ़े सब खोये कण l

हर लेते मन संताप ,ताप चाहे तो भीषण l
निशा में ओस चुपचाप,पौधों का करें पोषण l

ठिठुरन भरे तन मन में, शरद, शिशिर,ऋतु हेमंत  l
तन काँपे व दाँत बजे,आम जन हो या महंत l

ओस कण मृदु भार से,झुकती है धान बाली l
सुखी कृषक सब जन मन,अन्न धन मारे ताली l


देवों का वरदान यह,नभ बरसाये धरा पर l
ठंडे ठंडे सुखद जल,ओस बन बिछे धरा पर l

पूरब देती संदेश,प्रभा की लाली किरण l
पड़े है जब सबनम पर,चमके जगमग ओसकण l



लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली छत्तीसगढ़
03/12/2022

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