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   विज्ञापन अर्थात प्रचार प्रसार का एक तरीका  l जो दृश्य,श्रव्य और पठन सभी रूपों में हमारे सामने आता है l आज के युग को अगर हम विज्ञापन का युग कहे तो यह अतिशयोक्ति न   होगी  l   अखबार से लेकर पत्र-पत्रिकाओं,रेडियो से लेकर टेलीविजन,टेलीविजन से लेकर मोबाइल तक जहां तक हमारी नजर जाती है l यहां तक कि घरों की दीवारों पर खंभों पर जहां कहीं भी हम देखें हमें विज्ञापन ही विज्ञापन नजर आते हैं l इनकी भी कई वैरायटी है l कहीं गुमशुदा विज्ञापन, कहीं शादी के लिए वर वधू का विज्ञापन, कहीं प्रॉपर्टी लेनदेन का विज्ञापन, पुस्तकों का विज्ञापन, प्रदर्शनी यों का विज्ञापन, डॉक्टर- वैद्य, नीम- हकीम, ऐसी दुनिया में कौन सी चीज है जो वर्तमान में विज्ञापन का विषय नहीं है  l

इस तरह से हम जहां कहीं भी देखते हैं जाने अनजाने में किसी ने किसी चीज का विज्ञापन देखते सुनते और करते हैं  l इसीलिए यदि हम आज के वर्तमान युग को विज्ञापन का युग कहे तो यह अतिशयोक्ति न होगी l विज्ञापन ही है जिसकी वजह से चीजों का प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से हो पाता है l


इसने हमारी जिंदगी की बहुत सारी समस्याओं को आसान बना दिया है  l किसी चीज का पता लगाना हो उसके गुण दोष जानने हो तो हम सबसे पहले विज्ञापन अर्थात प्रचार-प्रसार की विभिन्न तरीकों का ही सहारा लेते है l सही चीज को ढूंढना उसका मूल्यांकन लगाना उसका अंदाजा लगाना उसके विभिन्न हेलो को समझने के लिए हम विज्ञापन का सहारा लेते हैं l


लेकिन कहा जाता है कि " अति सर्वत्र वर्जयते " अर्थात अति हर जगह मना है l अति हर चीज की बुरी होती है l चाहे वह अति आवश्यक से आवश्यक चीज ही क्यों न हो l विज्ञापन के संदर्भ में भी यही लागू होता है l आज हम देखते हैं कि विज्ञापन की वजह से बहुत सारी अनावश्यक चीजें हमारे सामने आती है साथ ही बहुत महत्वपूर्ण चीजें छूट भी जाती है l
अति तब और अधिक चुभती है जब बहुत महत्वपूर्ण चीजें विज्ञापन की वजह से नजरअंदाज कर दी जाती है  l 

विज्ञापन का भूत वर्तमान जीवन शैली एवं कार्यप्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा है l हमारी भारतीय संस्कृति  विज्ञापन के स्थान पर कर्म पर जोर देती है l कहने का तात्पर्य है कि अगर चीज अच्छी है तो वह बिकेगी l बात में दम होगा तो उसे अपनाया जाएगा जीवन में सार्थक उपयोग किया जाएगा l लेकिन यदि किसी बात में दम नहीं है तो उसे अपने आप एक कान से सुनकर दूसरे काम से बाहर कर दिया जाता है l यह बात भारतीय संस्कृति के  हर बात हर कर्म, हर आचरण और व्यवहार पर लागू होता है l लेकिन वर्तमान में लोगों ने अपनी तर्क शक्ति का उपयोग करना कम कर दिया है और केवल विज्ञापन के भरोसे जिंदगी जी रहे हैं l विज्ञापन हमें कहीं न कहीं झूठ की तरफ बहकाता है और प्रलोभन की दुनिया में फंसाता है l विज्ञापन की दुनिया में 100% में से 10% सच्चाई और बाकी 90% झूठ होता है l हम सब यह बात अच्छे तरीके से जानते समझते हैं फिर भी हम सब बेवकूफ बने विज्ञापन के जाल में फंसे हुए हैं l यह हमें विज्ञापन की दुनिया एक ऐसा मायाजाल है जिसे सब जानते हुए भी इसमें और डूबते चले जाते हैं l चाह कर भी इससे हम अछूते नहीं रह सकते l


इन सब के बावजूद भी विज्ञापन के और भी बहुत सारे पहलू हैl जिस पर हम सबको गौर करना चाहिए l इस पर हमें एक ठोस कदम उठाने की जरूरत महसूस होती है l सच कहूं तो इस पर  ठोस कदम उठाने की जरूरत है ही l आज के दौर में ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा जो टेलीविजन का उपयोग न करता हो ?  टेलीविजन हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा हो गया है  l खासकर हमारे बच्चे और हमारे घरों में रहने वाली  गृहणीया, घर के कामों से फ्री होकर टेलीविजन देखती हैं l इसमें  कोई बुरी बात नहीं है l पर तब क्या होता है? जब आप मम्मी पापा बच्चों और भाई बहनों के साथ किसी टीवी धारावाहिक का आनंद उठा रहे होते हैं और ऐसे में कोई आपत्तिजनक विज्ञापन सामने आ जाता है l एक पल के लिए हम सभी अवाक रह जाते हैं और शर्मिंदगी महसूस करते  हैं l आप ही बताइए इसमें हमारी क्या गलती है कि हम अपने परिवार सहित टी.वी देखने का आनंद उठा रहे हैं l जरा सोचिए छोटे बच्चों व  बढ़ते हुए बच्चों पर चाहे वह बेटी हो या बेटा हो, इन विज्ञापनों का क्या?, कितना?और कैसा प्रभाव पड़ता है? ऐसी ऐसी चीजों का विज्ञापन हमारे टेलीविजन व मोबाइल पर  प्रसारित किया जाता है l जिसकी बात अपने जीवनसाथी से भी करने में हिचक हो जाय l पश्चिमी सभ्यता की अंधी नकल में आज लोग इतने पागल हो गए हैं कि  अपने आचार,व्यवहार और लोक लाज, मर्यादा को भी ताक पर रख चुके हैं l अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जाने अनजाने विकृत, असभ्य  स्वच्छंदता को बढ़ावा दे रहे हैं l स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में अंतर भूल रहे हैं lउदाहरण के तौर पर ही हम एक विज्ञापन को देखते हैं l मान लो किसी टूथपेस्ट का विज्ञापन चल रहा है l अब यह बताइए कि टूथपेस्ट का विज्ञापन में सांसों की खुशबू को दिखाने के लिए क्या एक जवान लड़की और एक लड़के को आपस में नज़दीकियां बढ़ाते हुए दिखाना जरूरी है l क्या इसके जगह में कुछ और नहीं दिखाया जा सकता? क्या इस प्रकार से नज़दीकियां दिखाना हमारे छोटे बच्चों और बढ़ रहे बच्चों के दिमाग में  विपरीत लिंग के बेवजह के आकर्षण को बढ़ावा देना और उन्हें भी ऐसे ही गतिविधि करने की उकसाने की प्रक्रिया नहीं है l जो हमारे प्यारे बच्चों के सुकुमार दिमाग में जबरदस्ती भरी जा रही है? क्या यह हमारी सभ्यता और संस्कृति के हिसाब से गलत नहीं है? क्या इन सब चीजों का समाज पर कहीं ना कहीं जाने अनजाने  गहरा दुष्प्रभाव नहीं पड़ रहा है ? यह तो रही मात्र एक विज्ञापन की बात l जरा सोचिए ऐसा कौन सा घर और परिवार है l जहां आज मोबाइल फोन या टेलीविजन की उपलब्धता नहीं है ? ऐसा कौन सा परिवार है l जहाँ परिवार में छोटे बच्चे फोन या टेलीविजन का उपयोग नहीं करते हैं? सोचिए कितनी बार आपके बच्चे और आप खुद ऐसे विज्ञापनों से रूबरू होते हैं l क्या इस प्रकार के विज्ञापन की संस्कृति हमारे और हमारे बच्चों के लिए लाभदायक, हितकर, अच्छी है ? क्या हमें इन सब के खिलाफ आवाज नहीं उठानी चाहिए? क्या इनके खिलाफ कोई नियम कायदा कानून नहीं लाया जाना चाहिए? क्या हमें हमारे संस्कारों को और अपनी अच्छाई को बचाकर नहीं रखना चाहिए? क्या हमें समाज में सम्मान के साथ जीने, उठने बैठने और व्यवहार करने व पानी का अधिकार नहीं है? क्या हमें ऐसे संस्कार हीन, चरित्रहीन, लोगों व विज्ञापनों का बहिष्कार नहीं करना चाहिए?


आज समय आ गया है कि हम इन सब के खिलाफ मिलकर आवाज उठाएं  l इन सब चीजों के प्रति सतर्क हो जाएं और अपने बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए उन्हें सुरक्षित, संस्कारित और गौरवमयी भविष्य देने के लिए ऐसे लोगों,चीजों, विज्ञापनों से अपने बच्चों को बचाएं l इसके लिए हम सभी को ऐसी चीजों का बहिष्कार करना ही होगा l वरना हमारी अनमोल पूंजी जो हमारे बच्चे हैं उनका पतन निश्चित है l क्या आप और हम अपने बच्चों को सुरक्षित संस्कारित गौरवमई महान भविष्य नहीं देना चाहते हैं l अगर चाहते हैं तो मिलकर आवाज उठाइए और ऐसे विज्ञापनों का बहिष्कार कीजिए l ऐसे लोगों को ऐसी चीजों का बहिष्कार कीजिए जो जाने अनजाने अपने मोह पास में फंसा कर गलत दिशा में ले जा रहे हैं l जैसे ही विज्ञापन आए टी.वी तुरंत ऑफ करें l हल्ला बोल.............





लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली छत्तीसगढ़
30/12/2022

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