घर आए सियाराम
💐🙏🏻शीर्षक :85.
शीर्षक : घर आए सियाराम
कथा तुमको एक सुनाते है l
वचन की कीमत दिखाते है l
वचन पालन पर यह जग टिका l
महान ही वचन पर मर मिटा l
पालन करने पिता की आज्ञा l
वन गमन हँस स्वीकार किया l
प्राणनाथ मैं भी संग चलूंगी l
जो न गई तो मर जाउंगी l
जिद्द पे अड़ ही गई सीता l
हाथ जोड़ खड़े छोटे भ्राता l
वन पर्वत और नदी नाले l
वन में रहे संत रखवाले l
लाखों दनुजों को है मारा l
संत जनो का जीवन तारा l
दुख की निष्ठुर बेला आई l
हरन हो गई सीता माई l
धरती रावण भय से काँपे l
कठिन व्रत धर लक्ष्मण जागे l
रावण दम्भी अकड़ा खड़ा है l
घमासान तब युद्ध हुआ है l
लक्ष्मण मेंघनाथ को मारे है l
राम कुम्भकर्ण संहारे है l
रावण मरकर 4जीवित होता है l
देख घोर अचरज होता है l
रावण से सब ही डरते है l
राम सभी का दुख हरते है l
राम नें रावण को हराया है l
रावण नें सभी को सताया है l
चौदह बरस की अवधि पूरी l
अब सहन नही होती दूरी l
आई मंगलमय बेला है l
नगर बीच रेलमपेला है l
घर आए राम लखन सीता l
राम लखन नें जग को जीता l
घड़ी मंगलमय परम पुनिता l
राम का नाम है अति सुभिता l
घर-घर बाजन लगे बधावे l
स्वर्ण थाल आरती सजावे l
अमावस्या घोर निशा काली l
तम भगाती दीप की थाली l
दीप की पंक्तियाँ जल रही l
जगमग सब दिशाएं कर रही l
लाखों दीप जब साथ जलता l
तम दुम दबाकर भाग जाता l
दीपक जब झिलमिल जलते है l
इसे ही हम दीपावली कहते है l
सबकी शुभ होवे दीपावली l
खुशी भरें यह रात निराली l
लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली, छत्तीसगढ़
25/10/2022
शीर्षक : घर आए सियाराम
कथा तुमको एक सुनाते है l
वचन की कीमत दिखाते है l
वचन पालन पर यह जग टिका l
महान ही वचन पर मर मिटा l
पालन करने पिता की आज्ञा l
वन गमन हँस स्वीकार किया l
प्राणनाथ मैं भी संग चलूंगी l
जो न गई तो मर जाउंगी l
जिद्द पे अड़ ही गई सीता l
हाथ जोड़ खड़े छोटे भ्राता l
वन पर्वत और नदी नाले l
वन में रहे संत रखवाले l
लाखों दनुजों को है मारा l
संत जनो का जीवन तारा l
दुख की निष्ठुर बेला आई l
हरन हो गई सीता माई l
धरती रावण भय से काँपे l
कठिन व्रत धर लक्ष्मण जागे l
रावण दम्भी अकड़ा खड़ा है l
घमासान तब युद्ध हुआ है l
लक्ष्मण मेंघनाथ को मारे है l
राम कुम्भकर्ण संहारे है l
रावण मरकर 4जीवित होता है l
देख घोर अचरज होता है l
रावण से सब ही डरते है l
राम सभी का दुख हरते है l
राम नें रावण को हराया है l
रावण नें सभी को सताया है l
चौदह बरस की अवधि पूरी l
अब सहन नही होती दूरी l
आई मंगलमय बेला है l
नगर बीच रेलमपेला है l
घर आए राम लखन सीता l
राम लखन नें जग को जीता l
घड़ी मंगलमय परम पुनिता l
राम का नाम है अति सुभिता l
घर-घर बाजन लगे बधावे l
स्वर्ण थाल आरती सजावे l
अमावस्या घोर निशा काली l
तम भगाती दीप की थाली l
दीप की पंक्तियाँ जल रही l
जगमग सब दिशाएं कर रही l
लाखों दीप जब साथ जलता l
तम दुम दबाकर भाग जाता l
दीपक जब झिलमिल जलते है l
इसे ही हम दीपावली कहते है l
सबकी शुभ होवे दीपावली l
खुशी भरें यह रात निराली l
लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली, छत्तीसगढ़
25/10/2022
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