सिनेमा
💐सिनेमा
सिनेमा अर्थात फिल्मों को हमेशा से समाज का प्रतिबिंब माना जाता रहा है l फिल्मों में वही दिखाया जाता था l जो समाज में घटित होता था l अगर हम यह कहे कि फिल्म हमारे समाज को दिशा देने का कर्तव्य निभाते रहे हैं l तो इसमें कोई गलत होगा l लोग फिल्में देखकर उनसे प्रेरित भी होते हैं l उनके पात्रों से प्रभावित होते हैं और खुद को उन से जोड़कर देखते हैं l
ऐसे में फिल्म निर्माण करने वालों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे सामाजिक,आदर्श आत्मक,सांस्कृतिक व सौहार्दता को बढ़ाने वाली फिल्में बनाएं ताकि समाज को सही दिशा मिलती रहे l पहले इसी तरह की फिल्में बनती थी l पहले की फिल्में आदर्शवादी एवं सकारात्मक नजरिया को लेकर बनाई जाती थी l पारिवारिक, धार्मिक, सामाजिक, और संस्कृति रीति-रिवाजों को पोषित करने वाली फिल्में बनती थी l इन फिल्मों में कहीं न कहीं गलत कह रहे ट के व्यक्तित को अपनी गलतियों को समझने व सुधारने का अवसर भी दिया जाता था l जिससे कि वह व्यक्ति अपनी गलतियों को समझें और उनमें सुधार कर सके l ऐसी फिल्मों से प्रेरित होकर लोग अपनी गलतियों को सुधारते थे वह सही व्यवहार भी अपनाते थे l यह फिल्मी समाज को सही दिशा देने में अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाती थी l हमें अपनी गलतियां कभी-कभी समझ नहीं आती पर जब हम इसे अपने सामने किसी और को करते देखते हैं तटस्थ भाव से तब हम समझ पाते हैं कि हमारा व्यवहार कहां पर गलत था l पहले की फिल्मों में घर परिवार व संबंधों पर आधारित पटकथा का निर्माण किया जाता था l फिल्मों का आकर्षण तब चरित्र और लोगों का व्यवहार व कहानी होता था l इन फिल्मों में अंत भी सुखद होता था क्योंकि गलत कैरेक्टर खुद की गलतियों को मानकर उससे सबक लेता था l अपने कार्य में व्यवहार में चरित्र में सुधार लाता था जो हमें एक सुखद और सकारात्मक नजरिया प्रदान करता है l
पाश्चात्य संस्कृति से अति प्रभावित आज की सिनेमा अश्लीलता हिंसा फूहड़ता के अलावा कुछ नहीं दिखाती l ना पटकथा का ठिकाना होता है ना लॉजीक का उपयोग l माता-पिता परिवार सगे संबंधी रीति रिवाज जाने हिंदी फिल्मों से कब के गुम हो गए हैं l वर्तमान में नारी चरित्र को केवल और केवल अश्लीलता और वासना को उकसाने वाला कैरेक्टर बना दिया गया है l नारी शरीर को सामान की तरह फिल्मों में परोसा जा रहा है जो अति आपत्तिजनक है l नारी का सौंदर्य उसकी शालीनता में है ना कि फूहड़ता में l फिल्म इंडस्ट्री समाज को अपने फायदे के लिए गलत चीजें परोस रही है l समाज की वास्तविकता दिखा रहे हैं ऐसा कह कर वे समाज को कुछ भी अनाप-शनाप दिखा रहे हैं और युवाओं को उत्तेजित, कामातूर, निर्लज्ज, बनाने के साथ-साथ अपने घर - परिवार, रिश्तो, संबंधों, सामाजिकता, संस्कारों और रीति-रिवाजों से दूर कर रही हैं l ऐसी फिल्में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समाज की युवा पीढ़ी को गलत दिशा, पर गलत संदेश दे रहे हैं l
आज हिंदी फिल्म जगत अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों को नहीं निभा पा रहे हैं l इसके विपरीत वे समाज की युवा पीढ़ी को गलत दिशा और गलत दशा के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से उकसा रहे हैं l फिल्मों के जरिए युवाओं के कोमल मन पर प्रतिशोध और वासना की पट्टी चढ़ा रहे हैं l उनको सही दिशा दिखाना और अच्छे के लिए प्रेरित करने के स्थान पर उनको उनकी भावनाओं को स्वतंत्रता व अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर पतन वह हिंसा उद्दंडता निर्लज्जता,अश्लीलता की ओर अग्रसर कर रहे हैं l आज फिल्म इंडस्ट्री को पैसा वापस सिद्धि के अलावा कुछ नहीं दिखता l
वर्तमान में समाज में गिरते मूल्य और गिरती मानवीयता के पीछे इस फिल्मी दुनिया व फिल्मों का बहुत बड़ा हाथ है l फिल्म अभिनेत्री व अभिनेता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मां को बरगलाने में लगे हुए हैं l किसी जमाने में फिल्मी कैरेक्टर लोगों के आदर्श हुआ करते थे आज भी है पर आज वे लोगों को बस नकारात्मकता और अश्लीलता ही सिखा रहे हैं l ऐसे फूहड़ और असामाजिक लोगों को आज की युवा पीढ़ी अपना आदर्श मान रही है यह बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय हैं l अश्लील और अश्लीलता को लोग आदर्श मानेंगे तो उनसे अच्छे की उम्मीद कैसे की जा सकती है? अब समय आ गया है कि ऐसी फिल्मों का और ऐसे फिल्म में करो का पूर्ण बहिष्कार होना चाहिए जिससे कि इनको अपनी गलती समझ में आए और यह सही दिशा में कार्य कर सकें और हमारी युवा पीढ़ी को सही चीजें एवं सही दिशा दे सके l इससे पहले कि हमारी वर्तमान युवा पीढ़ी और गर्त में गिरते जाए और हमारे समाज में अश्लीलता व्यभिचार का बोलबाला और बढ़े इससे पूर्व हमें ऐसी फिल्मों का पूर्ण बहिष्कार कर देना चाहिए l
सिनेमा अर्थात फिल्मों को हमेशा से समाज का प्रतिबिंब माना जाता रहा है l फिल्मों में वही दिखाया जाता था l जो समाज में घटित होता था l अगर हम यह कहे कि फिल्म हमारे समाज को दिशा देने का कर्तव्य निभाते रहे हैं l तो इसमें कोई गलत होगा l लोग फिल्में देखकर उनसे प्रेरित भी होते हैं l उनके पात्रों से प्रभावित होते हैं और खुद को उन से जोड़कर देखते हैं l
ऐसे में फिल्म निर्माण करने वालों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे सामाजिक,आदर्श आत्मक,सांस्कृतिक व सौहार्दता को बढ़ाने वाली फिल्में बनाएं ताकि समाज को सही दिशा मिलती रहे l पहले इसी तरह की फिल्में बनती थी l पहले की फिल्में आदर्शवादी एवं सकारात्मक नजरिया को लेकर बनाई जाती थी l पारिवारिक, धार्मिक, सामाजिक, और संस्कृति रीति-रिवाजों को पोषित करने वाली फिल्में बनती थी l इन फिल्मों में कहीं न कहीं गलत कह रहे ट के व्यक्तित को अपनी गलतियों को समझने व सुधारने का अवसर भी दिया जाता था l जिससे कि वह व्यक्ति अपनी गलतियों को समझें और उनमें सुधार कर सके l ऐसी फिल्मों से प्रेरित होकर लोग अपनी गलतियों को सुधारते थे वह सही व्यवहार भी अपनाते थे l यह फिल्मी समाज को सही दिशा देने में अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाती थी l हमें अपनी गलतियां कभी-कभी समझ नहीं आती पर जब हम इसे अपने सामने किसी और को करते देखते हैं तटस्थ भाव से तब हम समझ पाते हैं कि हमारा व्यवहार कहां पर गलत था l पहले की फिल्मों में घर परिवार व संबंधों पर आधारित पटकथा का निर्माण किया जाता था l फिल्मों का आकर्षण तब चरित्र और लोगों का व्यवहार व कहानी होता था l इन फिल्मों में अंत भी सुखद होता था क्योंकि गलत कैरेक्टर खुद की गलतियों को मानकर उससे सबक लेता था l अपने कार्य में व्यवहार में चरित्र में सुधार लाता था जो हमें एक सुखद और सकारात्मक नजरिया प्रदान करता है l
पाश्चात्य संस्कृति से अति प्रभावित आज की सिनेमा अश्लीलता हिंसा फूहड़ता के अलावा कुछ नहीं दिखाती l ना पटकथा का ठिकाना होता है ना लॉजीक का उपयोग l माता-पिता परिवार सगे संबंधी रीति रिवाज जाने हिंदी फिल्मों से कब के गुम हो गए हैं l वर्तमान में नारी चरित्र को केवल और केवल अश्लीलता और वासना को उकसाने वाला कैरेक्टर बना दिया गया है l नारी शरीर को सामान की तरह फिल्मों में परोसा जा रहा है जो अति आपत्तिजनक है l नारी का सौंदर्य उसकी शालीनता में है ना कि फूहड़ता में l फिल्म इंडस्ट्री समाज को अपने फायदे के लिए गलत चीजें परोस रही है l समाज की वास्तविकता दिखा रहे हैं ऐसा कह कर वे समाज को कुछ भी अनाप-शनाप दिखा रहे हैं और युवाओं को उत्तेजित, कामातूर, निर्लज्ज, बनाने के साथ-साथ अपने घर - परिवार, रिश्तो, संबंधों, सामाजिकता, संस्कारों और रीति-रिवाजों से दूर कर रही हैं l ऐसी फिल्में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समाज की युवा पीढ़ी को गलत दिशा, पर गलत संदेश दे रहे हैं l
आज हिंदी फिल्म जगत अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों को नहीं निभा पा रहे हैं l इसके विपरीत वे समाज की युवा पीढ़ी को गलत दिशा और गलत दशा के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से उकसा रहे हैं l फिल्मों के जरिए युवाओं के कोमल मन पर प्रतिशोध और वासना की पट्टी चढ़ा रहे हैं l उनको सही दिशा दिखाना और अच्छे के लिए प्रेरित करने के स्थान पर उनको उनकी भावनाओं को स्वतंत्रता व अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर पतन वह हिंसा उद्दंडता निर्लज्जता,अश्लीलता की ओर अग्रसर कर रहे हैं l आज फिल्म इंडस्ट्री को पैसा वापस सिद्धि के अलावा कुछ नहीं दिखता l
वर्तमान में समाज में गिरते मूल्य और गिरती मानवीयता के पीछे इस फिल्मी दुनिया व फिल्मों का बहुत बड़ा हाथ है l फिल्म अभिनेत्री व अभिनेता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मां को बरगलाने में लगे हुए हैं l किसी जमाने में फिल्मी कैरेक्टर लोगों के आदर्श हुआ करते थे आज भी है पर आज वे लोगों को बस नकारात्मकता और अश्लीलता ही सिखा रहे हैं l ऐसे फूहड़ और असामाजिक लोगों को आज की युवा पीढ़ी अपना आदर्श मान रही है यह बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय हैं l अश्लील और अश्लीलता को लोग आदर्श मानेंगे तो उनसे अच्छे की उम्मीद कैसे की जा सकती है? अब समय आ गया है कि ऐसी फिल्मों का और ऐसे फिल्म में करो का पूर्ण बहिष्कार होना चाहिए जिससे कि इनको अपनी गलती समझ में आए और यह सही दिशा में कार्य कर सकें और हमारी युवा पीढ़ी को सही चीजें एवं सही दिशा दे सके l इससे पहले कि हमारी वर्तमान युवा पीढ़ी और गर्त में गिरते जाए और हमारे समाज में अश्लीलता व्यभिचार का बोलबाला और बढ़े इससे पूर्व हमें ऐसी फिल्मों का पूर्ण बहिष्कार कर देना चाहिए l
अब वह समय आ गया है जब हम सभी को मिलकर ऐसे फिल्म निर्माताओं को और फिल्म इंडस्ट्री को ऐसे फिल्में बनाने के लिए प्रेरित करना होगा कि वे पुनः साफ-सुथरी मर्यादित भावनात्मक संबंधों पर आधारित एवं रीति-रिवाजों, संस्कारों को दिखाती हुई गर्व का अनुभव करें एवं व्यक्ति समाज व देश हित में उपयोगी कथा वह चरित्रों का निर्माण कर अपने कर्तव्यों का सफल संचालन कर पाए l ऐसी फिल्मों का निर्माण हो जिसे हम सभी अपने परिवारों के साथ अपने बच्चों व माता-पिता के साथ आपस में बैठकर देख सके और उनसे कुछ सीख सके l ऐसी फिल्में बनाया जाय जिसमें हमारे आदर्श मानवीयता संस्कृति मान्यताएं व संबंधों को गौरवान्वित होने का पुनः सौभाग्य प्राप्त हो सके l अगर फिल्मी जगत एवं फिल्में इस राह पर नहीं चलें तो ऐसी फिल्म इंडस्ट्री का बंद होना ही हम सबके और देश हित में होगा l
जय हिंद
लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली छत्तीसगढ़
09/10/2022
जय हिंद
लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली छत्तीसगढ़
09/10/2022
Comments
Post a Comment