मन मंदिर छवि छाए रही

🙏🏻शीर्षक :  मनमंदिर छवि छाए रही


मेरे हिय पीर भरी है , विरह वेदना जला रही l
कैसे  तुझे  बताऊं मैं, तेरी  यादें  सता रही l
श्याम तुम तो नहीं आये,तेरी यादें  रुला रही l
पवन तेरे मधुर वेणु, की धुन यहाँ तक ला रही l


गले शोभित वैजयंती, मोरपँख लहराए रही l
पंकज नयन चितचोर हैं, सबका चित्त चुराए रही l 
जो तेरा दरस मिले हैं, अधर मुस्कान छाए  रही l
तुझे छोड़ किसे भजुँ कृष्ण,मन मंदिर छवि छाए  रहीl


दीवानी वन -वन भटके,कृष्ण कृष्ण जाप कर रही l
कृष्णा प्रेम हुआ जबसे,नाम की माला जप रही l
मिलन की आस हिय में लिए,तप के ताप में जल रही l
बैरागी  मन जोगन हो,तन मन की सुध भुला रही  l


मुझको खुद में मिला लो न, दूध में पानी मिल रही l
मुझमें मैं न बस तुम दिखो,पुष्प में सुगंध बस रही l
आत्मा परमात्मा एक हों,जैसे रविकिरण एक रही l
दो नहीं मिलके होंए एक,जल से जीवन मिली रही l


अभी न आए  कब आओगे ,नयन भी अब पथरा रही  l
नदी तीर नैया मेरी, आ हिचकोले  खाए रही 
l
तुम बन जाओ माझी जी, भंवर नाव डुबाय रही l
हृदय प्रेम दीप जला के,आरती तेरी गा रही l


कब आओगे मोहन तुम,प्रेम भाव से बुला रही l
होगा मिलन हमारा अब,यह भाव मन हर्षा रही  l
मन अधीर हुआ जा रहा,मिलन घड़ी पास आ रही  l
खोल पिंजरे के द्वारे,थाम मुझको मैं आ रही l


लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली (छत्तीसगढ़)
16/10/2022

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