तन्हाई और दर्द

तन्हाई और दर्द 


जैसे तन्हाई मेरा घर भूलती नहीं,
वैसे दर्द मेरा पता ढूंढ ही लेते है l
जिस दिन कोई दर्द ही ना हों तो,
अनु जिन्दा होने में संदेह होता है l

जिंदगी अधूरी सी लगती ये हमें,
दर्द की इस कदर आदत हो गई है l
जब तक आंखें नम ना हो जाये,
अनु खुशी भी अधूरी लगती है l

वह भी मेरे बिना कभी रह नहीं पाती,
दर्द से जाने कैसा अंजाना रिश्ता है l
जिस दिन दर्द ना हों क्या कहुँ अनु,
खुशी भी दिल को चोट दें जाती है l


एक ही सिक्के के दो पहलू है दोनों,
एक के बिना दूसरे की पहचान नहीं l
दर्द के बिना सुकून का वजूद ही कहाँ,
सुकून का अहसास दर्द के बाद ही है l


तेरे बिना कहीं दिल नहीं लगता मेरा,
ये तन्हाई तेरी कुछ इस कदर आदत है l
जब तक रहेगी जिन्दा इस जहाँ में l
याद रखना अनु को तेरी चाहत है l



लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़

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