क्या चाहे स्त्री

💐विषय - स्त्री मन

शीर्षक - क्या चाहे स्त्री

बड़ा कोमल सा होता है स्त्री का मन,
निश्चल होता है जैसे हो कोई दर्पण  l
करती अपनी हर जिम्मेदारी को पूरी,
कर देती है हँसकर सर्वस्व समर्पण l

सरल सा सीधा साधा होता है उसका मन,
बिल्कुल तुम्हारे हमारे ही मन की तरह  l
उसका मन भी बस वही सब कुछ चाहे,
जो तुम्हारे लिए चाहे तुम्हारा अपना मन l

एक सुंदर,सरल,सुघड़, सुखमय जीवन,
बोलो क्या नहीं चाहता है यह तुम्हारा मन l
तुम अपने सपनों की खुली उड़ान चाहते,
उसका मन भी अपने सपने पूरे करना चाहे l

स्त्री का मन खुल कर रोना -हंसना चाहे l
अपने अरमानों के परों के लिए उड़ान चाहे l
सच्चे प्यार का बस सच्चा एहसास चाहे l
घर परिवार में अपना भी अधिकार चाहे l


अपना खोया हुआ वह सम्मान चाहे l
कलंकित करने वालों हेतु तलवार चाहे  l
करे जो सच्चा न्याय वो परवरदिगार चाहे l
अपनी क्षमता की गहराई को नापना चाहे l


सास-ससुर का स्नेह भरा लाड दुलार चाहे l
जो सदा साथ निभाए ऐसा परिवार चाहे l
जो दे पूरा सम्मान उसे ऐसा हमसफर चाहे l
परिवार के हर लबों पर सजी मुस्कान चाहे  l

करे जो उस पर यकीन वो सहारा बनना चाहे l
बुझती आंखों का दीपक बनना चाहे l
पिंजरे का जीवन नहीं खुला आसमान चाहे  l
जो खुद तय करे अपनी मर्यादा वो अधिकार चाहे l


घुटती सहमती जिंदगी से निजात चाहे l
बस जरा सा सुकून भरा आसमां चाहे l
स्त्री क्या चाहे बस अपने लिए न्याय चाहे  l
स्त्री है अपने लिए स्त्री का स्वाभिमान चाहे  l


लोकेश्वरी कश्यप
मुंगेली, छत्तीसगढ़
12/09/2022

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