लाख टके के दोहे
लाख टके के दोहे
हिमालय से चली गंग, लेकर निर्मल धार l
भव ताप पाप हरण को,बनी नाव-पतवार l
नदी नहीं भवतारन ये,जन करती भव पार l
पापनाशिन माँ गंगा, नाश करें सब पाप l
हिमालय है सरताज, समझ मत बस पहाड़ l
देश रक्षा में तैयार, शत्रु का जमे हाड़ l
हिमालय का उपकार, भूलो मत सूजान l
महिमा है अतुलित, जाने सकल जहान l
औषधी की खान यहाँ,करे रोग निदान l
निर्मल नदियाँ बहती , जो इसकी संतान l
नदी समीप बसते जन,फले - फुले सभ्यता l
जीवन में समृद्धि हो, उपजाऊ बनें धरा l
सब ओर हरा - भरा हो, नीक लगता संसार l
वृक्ष शुद्ध पर्यावरण दे, करते है उपहार l
सूखी समृद्ध हो देश, हरियाली जब हो l
उपकार है वृक्षों का, हर जन निरोग हो l
लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़
भव ताप पाप हरण को,बनी नाव-पतवार l
नदी नहीं भवतारन ये,जन करती भव पार l
पापनाशिन माँ गंगा, नाश करें सब पाप l
हिमालय है सरताज, समझ मत बस पहाड़ l
देश रक्षा में तैयार, शत्रु का जमे हाड़ l
हिमालय का उपकार, भूलो मत सूजान l
महिमा है अतुलित, जाने सकल जहान l
औषधी की खान यहाँ,करे रोग निदान l
निर्मल नदियाँ बहती , जो इसकी संतान l
नदी समीप बसते जन,फले - फुले सभ्यता l
जीवन में समृद्धि हो, उपजाऊ बनें धरा l
सब ओर हरा - भरा हो, नीक लगता संसार l
वृक्ष शुद्ध पर्यावरण दे, करते है उपहार l
सूखी समृद्ध हो देश, हरियाली जब हो l
उपकार है वृक्षों का, हर जन निरोग हो l
लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़
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