गरीब आदमी

🙏🏻शीर्षक - गरीब आदमी

दो वक्त की रोटी पाने की खातिर,
जी तोड़ मेहनत करता गरीब आदमी l
रहता फटे हाल,पत्नी बच्चों के तन ढकने,
सुबहो से शाम कमाता गरीब आदमी l


फुर्सत कहाँ उसे जों करे इधर- उधर,
राजनीती भरी बातें वह गरीब आदमी l
तन का मैला और मन का उजला,
सीधा -सादा,सच्चा होता गरीब आदमी l


किसी और के फटे में टांग नहीं अडाता,
जितना मिलता उसमे खुश रहता गरीब आदमी l
जितनी चादर बस उतना ही पांव पसारे,
चकाचौंध से रहता है दूर गरीब आदमी l


महलों के सुन्दर सपने जो देखें वह,
ऐसे तो उसके मजबूत हालत नहीं l
बस सर छुपाने को इस जहान में,
छोटा सा अपना आशियाना चाहे गरीब आदमी l

बस जुगाड़ में उम्र तमाम फना कर जाता l
रोटी,कपड़ा,मकान को तरसता गरीब आदमी l
कुछ मिलता,कुछ ना मिलता पर आस में,
जिंदगी भर यूँ ही जीता गरीब आदमी l


रवि की आंच में तपकर,सोने सा बदन,
लोहे सा टिकाऊ पर कोयला सा बन जाता l
भरी जवानी में झुर्रियो का उपहार पाता,
पर श्रमपथ पर अडिग चलता गरीब आदमी l


किसी बड़ी खुशी की राह नहीं तकता,
छोटी -छोटी खुशियों पर खुश होता गरीब आदमी l
मेहनत से जी चुराता, घबराता नहीं कभी,
कड़ी मेहनत करके खाता गरीब आदमी l


हर काम का है वह सम्मान करता l
किसी का अपमान करता नहीं गरीब आदमी l
बड़े से बड़ा निर्माण नित करता रहता,
पर सम्मान कभी पाता नहीं गरीब आदमी l


सुनता रहता है वह बातें सबकी,
अपना दर्द कह नहीं पाये गरीब आदमी l
इस सुन्दर जहाँ में उम्मीदें लेकर आता,
एक दिन चुपचाप चला जाता गरीब आदमी l



लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़
14/05/2022

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