धोखा

💐शीर्षक - धोखा

थी उम्र उसकी सतरा साल,
रखती थी तन, मन को संभाल l
खिलती कली बाबुल के बाग की,
आन माँ - बाप कुल के शान की l


एक दिन गली के मोड़ पे वो टकराई,
जोरों से दिल धड़का वो घबराई l
दो नैन मिले उसके भोले भाले से,
मिलकर दो से चार हुए मतवाले से l


जाने उसे क्यों वो आँखें याद आने लगी l
दिल धड़कने लगा वो समझाने लगी l
फिर उस मोड़ तक वो कई बार जाने लगी l
उसकी आँखें वहाँ जाने क्या तलाशने लगी l

उस दिन स्कुल से निकलते हुए उसने देखा l
वही दो प्यारी आँखें उसे ही देख रही थी l
दिल जोरों से धड़कनें लगा पाँव लड़खड़ाए l
उधर आँखों में चमक, होठों पे मुस्कान थी l


फिर तो वह यक बयक उससे टकराने लगा l
स्कुल से घर के रास्ते में कई बार नजर आने लगा l
ये इत्तेफाक था या वक्त की कोई साजिस थी l
अब उसके नैन अजनबी का इंतजार करने लगे l


कुछ दिनों से उसका मन उदास रहने लगा l
क्योंकि अजनबी कुछ दिनों से नहीं दिखा l
जाने क्या बात हुई, जाने क्या हालत हुए l
कई दिन यूँ ही बीत गये उनकी मुलाक़ात हुए l


उसकी नजरें हर जगह अजनबी को तलाशती रही l
मन ही मन जल बिन मछली सी तड़पती रही l
एक दिन गुमसुम सी वह शाला से घर जा रही थी l
रास्ता सुना था और दिल भी उसका उदास था l


जाने कहाँ से अचानक सामने उसके वो आया l
यूँ अकेले में खुद के इतना करीब देख मन घबराया l
खूबसूरत सा लाल गुलाब अजनबी ने आगे बढ़ाया
वह हड़बड़ाई, क्या करे उसे कुछ समझ ना आया l


सकुचाते मन से उसने हाथ आगे बढ़ाया l
फिर तो मिलने लगे दोनों ही अक्सर  l
धीरे धीरे होने लगी दोनों में प्यारी बातें भी l
दोनों पे छाने लगी इश्क कई दीवानगी l


रुत बदला, मौसम बदला, बदल गया साल l
वक्त भी आहिस्ता आहिस्ता चल रहा चाल l
इजहारे मोहब्बत के बदल गये चाल ढाल l
आँखों से जिस्मो तक इश्क चढ़ने लगा परवान l


एक दूजे बिन अब जीना हुआ दुश्वार l
जब पता चला घर में दंग रह गया परिवार l
सबनें समझाया,अनेकों दिखाए परिणाम l
पल्ले ना पड़ी कोई बात, प्रेरोग से थी बीमार l


प्यार मे छोड़ दिया घर,माँ- बाप, परिवार l
सुनहरे सपने सजाये चली पिया के द्वार l
प्यार से बसाया दोनों नें अपना सपनों का संसार l
दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगा आपस में प्यार l


वक्त में पलटा मारा बदल गये अजनबी के चाल l
अजनबी के रोज नये नये घर आने लगे मेहमान l
दुहाई दी,की मिन्नते मासूम नें हाथ जोड़  हजार l
प्यार का उतरा बुखार, बुरा हो गया उसका हाल l


कुछ दिनों बाद कुछ और लड़कियां भी,
उसकी तरह अजनबी का शिकार बनी l
मासूम दिखने वाला अजनबी, दरिंदा निकला l
जाने कितनी उसकी मासूमियत का शिकार बनी l


याद आने लगा उसे अपना घर आँगन परिवार l
उनकी बात समझी नहीं पकाती ख्याली पुलाव l
दीवानगी की भेंट चढ़ गई उसकी खुशियाँ तमाम l
बर्बाद हो गईं जिंदगी,अब सर पीटने से क्या काम l


प्यार करो प्यार करने में कोई बुराई नहीं l
पर पागलपन में ख्याली पुलाव पकाना नहीं l
जब सही गलत समझने की ना हो समझ l
परिवार की मान मर्यादा दांव पर लगाना नहीं l


लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली , छत्तीसगढ़
11/05/2022

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