शांति की तलाश


शांति की तलाश*



शांति की चाहत तो सब करते हैं जीवन मे.

 पर खुद शांत कभी नहीं रहते.

 कैसे होगी इस धरा पर शांति,

 जब सबके मन मे बसा अशांति ही अशांति.



शांति तो मृग का कस्तूरी हो गया.

 है सबके अंदर पर पाता कोई नहीं.

 सब इसकी तलाश में भटक रहे हैं दर -बदर.

 पर यह बाहर कहां यह तो है  अपने भीतर.



 दो पल चैन से तो बैठो जरा सा मुस्कुरा कर देखो

 देखो तो जरा आपके भीतर   कितनी शांति है.



 दो पल बस दो पल उस परमात्मा को याद करो

उससे ज्यादा अपने दिल की बात करो

 देखो तो कितनी शांति है तुम्हारे भीतर



 देखो तो दरवाजे पर कौन आया है

 शायद किसी को आपकी मदद की जरूरत हो

 उसकी जरा मदद तो करो

महसूस करो फिर जी भरकर शांति



 कितना सुख है इस देने में

जितना देते जाओगे उतना पाते ही जाओगे 

 जितना दे सकते हो दो

फिर देखो कैसे मिलती है शांति



 किसी रूठे को मनाओ

 किसी दुखिया को हंसाओ

 किसी गिरे हुए को उठाओ

फिर महसूस करो कितनी सुलभ हैं शांति 



 तलाश है तुम्हें और किस शांति की

हर वो चीज जों तुझे सुकून दे

सब कुछ तो तेरे पास हैं

 तुझे तलाश है और किस शांति की



 शांति चीजों को इकट्ठा करने से नहीं मिलती हैं

यह तो जितना बांटो उतनी ही हमें मिलती हैं.



रुको तो जरा  दो पल जरा सोचो तो

मृग बने क्यू बन बन फिरते हो

जिस कस्तूरी की तलाश हैं तुम्हे वह शांति तो तुम्हारे ही भीतर हैं.



 इस भागमभाग की दुनिया में दो पल ठहर कर नहीं देखा.

बच्चों के चेहरे को जरा प्यार से तो देखो

 कितनी निश्चल मुस्कान है उनकी

 क्या वहां  नहीं दिखती आपको शांति.



 बूढ़े मां बाप के कमरे मे जाकर हाल तो पूछो

 फिर उनकी आंखों में झांककर देखना

अहसास तो करो कैसी होती हैं शांति.



थकी हुई पत्नी का जरा हाथ तो बताओ

देखना फिर कैसी होती हैं शांति



थके हुए पति को एक प्यारी सी मुस्कान तो दो

फिर देखो उस थके हुए पति के चेहरे पर शांति.


 जीवन में कहां नहीं है शांति

 फिर क्यों हम इधर से उधर

 जाने क्यों दरबदर

 ढूंढते फिरते हैं शांति शांति.





 लोकेश्वरी कश्यप

जिला मुंगेली छत्तीसगढ़

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