स्मृतियों के झरोखे से
🙏🏻विषय - स्मृतियों की झरोखे से
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
दीदी से रोज राम में कहानियाँ सुनना,
हम भाई बहनो का आपस का वो प्यार,
सारे खिलौनो को छोड़कर,
किसी एक खिलौने ले लिए लड़ना,
वो बार -बार शिकायत की धमकी देना,
शाम को पिताजी का थैला लेने के लिए,
सबसे पहले दौड़ लगाना खाई ढूंढने के लिए l
(खाई =खाने की कोई चीज )
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
वो प्यारी सखी -सहेली,
जिनके संग खेला करते थे,
खेल गुड्डे - गुड़ियों के l
जिनके साथ सुबह झगड़ा होता था,
शाम उनके साथ गले में बही डाल,
घुमा करते थे मोहल्ले में l
जाने कितने तरह के खेलते थे खेल l
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
माँ के पैर दर्द करने पर,
झूल -झूलकर पैर दबाना माँ का मुस्काना,
सर्दियों में नहीं नहाने के नहाने बनाना,
गर्मियों में घंटो पानी में डुबकी लगाना,
बारिशो में कीचड खेलना कागज की नाव चलना,
सबकी नकल उतारना और मस्ती करना,
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
वो तितलियों को पकड़ने उनके पीछे जाना,
वो छिप -छिप कर मिठाइयाँ खाना,
अपनी गलती ना मान हजार भाने बनाना,
रामायण,महाभारत देखने दौड़े आना,
गाँव,मोहल्ले में विसिआर लाये जाने पर,
जगह रोकने बोरी ले जाना और पसर जाना,
बगीचे से आम, अमरुद चुराकर खाना l
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें अल्हड़पन की l
वो बात - बात पे, कभी बिना बात के इठलाना,
आईने में खुद को देख के शर्माना,
कभी खुद को बड़ी समझ छोटो को डपटना,
थोड़ा जानते हुए बहुत की नौटंकी करना,
हुकुम चलाना और इतराना,बेवजह गुनगुनाना,
वो शर्माना, वो पलकें उठा के पलकें झुकाना,
वो सपने सजाना पढ़ -लिखकर क्या बनना है l
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली छत्तीसगढ़
15/05/2022
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
दीदी से रोज राम में कहानियाँ सुनना,
हम भाई बहनो का आपस का वो प्यार,
सारे खिलौनो को छोड़कर,
किसी एक खिलौने ले लिए लड़ना,
वो बार -बार शिकायत की धमकी देना,
शाम को पिताजी का थैला लेने के लिए,
सबसे पहले दौड़ लगाना खाई ढूंढने के लिए l
(खाई =खाने की कोई चीज )
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
वो प्यारी सखी -सहेली,
जिनके संग खेला करते थे,
खेल गुड्डे - गुड़ियों के l
जिनके साथ सुबह झगड़ा होता था,
शाम उनके साथ गले में बही डाल,
घुमा करते थे मोहल्ले में l
जाने कितने तरह के खेलते थे खेल l
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
माँ के पैर दर्द करने पर,
झूल -झूलकर पैर दबाना माँ का मुस्काना,
सर्दियों में नहीं नहाने के नहाने बनाना,
गर्मियों में घंटो पानी में डुबकी लगाना,
बारिशो में कीचड खेलना कागज की नाव चलना,
सबकी नकल उतारना और मस्ती करना,
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
वो तितलियों को पकड़ने उनके पीछे जाना,
वो छिप -छिप कर मिठाइयाँ खाना,
अपनी गलती ना मान हजार भाने बनाना,
रामायण,महाभारत देखने दौड़े आना,
गाँव,मोहल्ले में विसिआर लाये जाने पर,
जगह रोकने बोरी ले जाना और पसर जाना,
बगीचे से आम, अमरुद चुराकर खाना l
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें अल्हड़पन की l
वो बात - बात पे, कभी बिना बात के इठलाना,
आईने में खुद को देख के शर्माना,
कभी खुद को बड़ी समझ छोटो को डपटना,
थोड़ा जानते हुए बहुत की नौटंकी करना,
हुकुम चलाना और इतराना,बेवजह गुनगुनाना,
वो शर्माना, वो पलकें उठा के पलकें झुकाना,
वो सपने सजाना पढ़ -लिखकर क्या बनना है l
स्मृतियों के झरोखे से झाँकती है,
कुछ प्यारी यादें बचपन की l
लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली छत्तीसगढ़
15/05/2022
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