2 जून की रोटी

🙏🏻2 जून की रोटी

भूखे पेट की सिसकियाँ आँखों से बरसती हैं l
यहाँ 2 जून की रोटी को जिंदगी तरसती है l
जेठ की दुपहरी में नंगे पाँव ग़रीबी चलती है l
फिर भी दो बूंद जिंदगी की बेमोल मिलती है l


महंगाई की मार गरीब की कमर तोड़ती है l
घुटती जिंदगी जीने की आस भी छोड़ती है l
होठों तक आकर भी मुस्कान लुटती है l
बंद बोतलों में साहब यहाँ पानी बिकती है l


बंजर प्यासी धरती हरियाली को तरसती हैl
ठूँठ की चिड़िया जल बिन मछली सी तड़पती है l
प्रदूषण की दवागनी जिंदगीया निगलती है l
अनु अब तो हवा भी बंद डिब्बो में बिकती है l


छोटी छोटी कोठरियों में जिंदगी सिमटती है l
अपनों के प्यार के लिए बूढ़ी आँखें तरसती है l
जेठ की दुपहरी में दो निवाले जुटाने जिस्में तपती है l
गरीबी से उबरने में तमाम उम्र कटती है l


उस दुकान का पता दे जहाँ खुशिया बिकती है l
वो फनकार कहाँ है जो फटे अरमान सिलती है l
छूटती,घुटती जिन्दगियाँ हर पल सिसकती है l
झूलसता बचपन को मासूमियत को तरसती है l



लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली छत्तीसगढ़
02/06/2022

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