प्रतिवेदन श्रंखला 7

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प्रतिवेदन

ECCE पर विशेष प्रशिक्षण एवं चर्चा

दिनाँक -17/05/2021

प्रशिक्षक -श्री सुनील मिश्रा सर

मंच संचालन - श्रीमती योगेश्वरी तम्बोली

आज का विषय-शाला पूर्व बच्चों में भाषायी विकास ।

भाषा  का बच्चों की पहचान और भावनात्मक सुरक्षा के साथ घनिष्ठ संबंध है ।भाषा उन्हें स्वयं के अभिव्यक्ति करने में सहायता करते हैं। बच्चों में जिज्ञासा की भावना बहुत ज्यादा होती है। वे अपने आसपास जिन चीजों को, घटनाओं को ,व्यक्तियों को देखते हैं उनके बारे में ढेर सारे सवाल करते हैं ।वे अपने आसपास की चीजों के बारे में जो समझ बनती है। उसे बताने का प्रयास अपनी भाषा में करते हैं ।बच्चे भाषा के द्वारा अपने सोच विचार अनुभव भावनाएं जिज्ञासा को बताते हैं ।3 से 6 वर्ष के बच्चों में भाषायी विकास को निम्नलिखित बिंदुओं में बांटा जा सकता है-
1. बच्चों के साथ बातचीत ।
2. पढ़ना लिखना सीखने की तैयारी ।
3. श्रवण विभेदीकरण की क्षमता का विकास ।
4.गीत और बाल कविताएं ।
5.कहानियां ।
6.पहेलियां ।
7.चित्र वर्णन ।
8.सूक्ष्म क्रियात्मक समन्वय (हाथ आंख और उंगलियों का समन्वय)  ।
9.वस्तुओं का नाम पहचानने में और उसे अपने अनुभवों से जोड़ पाना ।
10.दृष्टि मुलक विभेदीकरण।
11. बोल -बोल कर पढ़ना।
भाषा की शुरुआत-
बच्चे जो जानना चाहते हैं , उसके लिए वे  ढेर सारे प्रश्न करते हैं। और जो वह जानते हैं, उसे बताने की कोशिश करते हैं। बच्चों की बातों का सकारात्मक उत्तर देकर संकल्पनाओ और नए शब्दों से  परिचय, पालक व शिक्षक बातचीत के दौरान करा सकते हैं ।बच्चों को प्रश्न पूछने पर रोकना उनके भाषा विकास को रोकना है। उनसे विस्तार पूर्वक बातचीत करने पर उनके भाषायी कौशल का विकास किया जा सकता है। बड़ो की बातों  को सुनकर वे नए शब्दो को ग्रहण करते है व समान परिस्थितियों में उसका उपयोग भी बड़ी कुशलता से करते हैं।
पूर्व प्राथमिक शिक्षा में भाषा  शिक्षन  के चार अंग हैं-1.सुनना
2.बोलना
3.पढ़ना 
4.लिखना।
 यह समस्या देखी जाती है, कि पालनकर्ता बच्चों की बातों को सुनने के लिए समय नहीं देते। बच्चे जिन चीजों को समझने की कोशिश कर रहे हैं ,उसके प्रति संवेदनशील नहीं रह पाते। जब ऐसा किया जाता है तो बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में संकोच करने लगते हैं ।  भाषायी विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जब बच्चे कुछ बताएं, तो उन्हें ध्यान से सुने ।उन्हें बोलने के अवसर दें। जब बच्चों की जिज्ञासा और उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए, उन्हें चीजों के बारे में स्पष्ट बताया जाएं ।उन्हें  प्रश्न पूछने के मौके दे।उत्तर देने के लिए प्रेरित करे।उनकी व्याकरणिक गलतियों के लिए उन्हें बोलते समय बीच में ना टोके ,बल्कि उनकी बात पूरी होने के बाद उन वाक्यों को सही रूप में बोले । धीरे -धीरे  बच्चे  स्वयं इसमे सुधार कर लेते हैं।इससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुचाए बिना उनकी गलती सुधारे। उनके उत्तर की आलोचना करने व हंसी उड़ाने से बच्चे अपनी बात कहने  से कतराने लगते हैं।  
पूर्व प्राथमिक शाला के बच्चों के साथ बातचीत करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए -
1. उनसे बातचीत स्वभाविक होना चाहिए ना की यांत्रिक ।
2. बातचीत का विषय उनके लिए मजेदार और दिलचस्प हो ।
3.बातचीत के विषय उनके परिचित हो।
 4. बच्चों से सामूहिक बातचीत के साथ-साथ व्यक्तिगत रूप से भी बात करें।
 5.बच्चों को आपस में बात करने की भी पर्याप्त अवसर दें।
 बच्चों के साथ किया गया बातचीत यांत्रिक ना होकर स्वभाविक होना चाहिए ।सामूहिक क्रियाओं के साथ ही व्यक्तिगत रूप से भी बच्चों से बातचीत करना चाहिए ।बच्चों को मात्र श्रोता  बनने ,या हां और ना में उत्तर देने तक ही सीमित नहीं करना चाहिए ।कार्यकर्ता उन्हें ज्यादा से ज्यादा बोलने का मौका देकर उनके शब्द भंडार को बढ़ावा देते हैं। बच्चों को नई संकल्पना वाले शब्दों (पहाड़,नदी, बारिश, पेड़,जानवर,
 नदी, चिड़िया ,घर ,महल) से परिचित कराने के लिए 1. प्रत्यक्ष रूप से 2. चित्रों के द्वारा 3. कार्य से संबंधित। इन तरीकों से उनमें शब्द भंडार बढ़ाए जा सकते हैं। जब बच्चे किसी शब्द को बोलते है तो उनके दिमाग मे उसका एक चित्र भी बनता है। फिर बच्चे चित्र और शब्द को जोड़कर उसके बारे में अपनी धारणा बनाते हैं। 
आज के प्रशिक्षण में बच्चों के भाषा विकास  पर बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिली।भाषा बच्चों में अभिव्यक्ति के साथ साथ अन्य सभी विषयो का भी आधार है ।अतः इसका समुचित विकास अवश्य किया जाना चाहिए।
विशेष-बच्चों में भाषा विकास के लिए महत्वपूर्ण सन्दर्भ पुस्तक-
 "बच्चे की भाषा और अध्यापक  
 लेखक-डॉक्टर कृष्ण कुमार ।

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