प्रतिवेदन क्रमांक 4

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प्रतिवेदन

13/5/2021
ECCE पर विशेष प्रशिक्षण

प्रेरणा स्त्रोत व प्रशिक्षक :-आदरणीय श्री सुनील मिश्रा सर जी🙏

 

विषय :- शालापूर्व बच्चों में संज्ञानात्मक योग्यता का विकास.

 प्रशिक्षण के इस कड़ी में शाजापुर व बच्चों के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण गतिविधियों के बारे में चर्चा की गई. इस चर्चा के द्वारा पाया गया किशालापूर्व बच्चों में अपने आसपास के प्रति अत्यंत संवेदनशीलता होती है. वे अपने आसपास की सभी चीजों को ध्यान से देखते समझते हैं और उसके  बारे में अपनी  अवधारणा गढ़ते रहते है. अच्छा शिक्षकों को चाहिए कि बच्चों के साथ कोई भी एक्टिविटी करते समय बच्चों के आसपास की वस्तुओं को वातावरण को हेलो को खेल गतिविधियों के माध्यम से बच्चों के सामने प्रस्तुत करें जिससे कि उनकी अवधारणा एक कदम आगे परी पुष्ट होती चली जाए हर समय.

 बच्चों के संज्ञानात्मक योग्यता की विकास की तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की गई जो इस प्रकार से हैं.

👉  *सामान्य संबंधों को पहचान पाने की योग्यता का विकास  *

👉  *क्रमबद्ध कर पाने की योग्यता का विकास*


👉   *कारण व प्रभाव के आपसी संबंधों को समझने की योग्यता का विकास*


👉   *सामान्य संबंधों को पहचान पाने की योग्यता का विकास*

 इसके अंतर्गत यह जानने का अवसर मिला कि बच्चों के साथ मिलान संबंधी गतिविधियां अथवा खेल कराते समय हमें बच्चों के आसपास की उनके अर्थपूर्ण संदर्भों से वस्तुओं का चयन करना चाहिए. जैसे कि बकरी का मिलान बकरी के बच्चे से करना हो तो चित्रों के माध्यम से एक तरफ माता-पिता के विभिन्न प्रकार चित्र और दूसरी तरफ उनके विभिन्न प्रकार के बच्चों को ले सकते हैं जिनका क्रम उलट-पुलट दे एवं बच्चों से कहें कि वे माता-पिता से बच्चों को मिलान करें. जैसे की बकरी के चित्र का मिलान बकरी के बच्चे से, गाय के चित्र का मिलान बछड़े के चित्र के साथ करना मुर्गी के चित्र का मिलान चूजे के चित्र के साथ करना. इस गतिविधि को प्रत्यक्ष दिखाकर भी किया जा सकता है अगर आसपास में गाय बकरी या विभिन्न प्रकार के पशु जब हो पक्षी जब हो तब भी बच्चों से चर्चा करके इसे गतिविधि को करवा सकते हैं. बच्चों से उनके घर के आसपास मिलने वाले जानवरों पशु पक्षियों इत्यादि के बारे में चर्चा करके भी इस गतिविधि को करवा सकते हैं कि जैसे गाय के बच्चे को क्या कहते हैं मुर्गी के बच्चे को क्या कहते हैं क्या आप देखोगे तो उनके मम्मी पापा को पहचान लोगे. तरह से बच्चों से बहुत सारी चर्चा करके भी हम बच्चों में संबंधों की पहचान की गतिविधि कर सकते हैं.


👉   * क्रमबद्ध कर पाने की योग्यता का विकास*


 क्रमबद्ध कर पाने की योग्यता के विकास से पूर्व यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि बच्चों को तुलना  करने की पूर्व अनुभूति अथवा गतिविधि करवाई जा  सुखी हो एवं बच्चों का दो वस्तुओं की बीच तुलना करना आता हो. ध्यान रहे तुलना वस्तुओं के बीच हो ना कि बच्चों के बीच. अर्थात तुलना करने की गतिविधि वस्तुओं के संदर्भ में करवाई जाए ना कि दो बच्चों के बीच में तुलना की जाए. तुलना रंग आकार आकृति वजन इत्यादि में करवाई जा सकती है. तुलना करने की योग्यता संबद्धता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. वैसे साल्हापुर वह बच्चे स्वाभाविक रूप से तुलना करना जानते हैं जैसे मेरी पेंसिल बड़ी है मेरे पास ज्यादा चॉकलेट है मुझे थोड़ा सा मिला है उसने ज्यादा खाया है इत्यादि. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि साला पूर्व बच्चों में तुलना की अवधारणा पूर्व से ही होती है जैसे बच्चों द्वारा यह कहना  मैं पतली हूं वह मोटी है. यह काम है वह ज्यादा है यह बहुत बड़ा है यह छोटा है इत्यादि.  बच्चों से कोई भी गतिविधि करवाते समय उनसे लगातार कुछ न कुछ पूछते रहे जैसे यह क्या है यह कितना बड़ा है यह कैसा दिख रहा है इससे बड़ा क्या है इस से छोटा क्या है इसकी आवाज कितनी तेज है इससे धीमी आवाज किसकी है इससे दिए तेज आवाज किसकी है. यह कौन सा रंग है कौन सा गाना रंग है कौन सा हरा है इससे गाना कौन है इत्यादि. बच्चों के सामने अनेक प्रकार से गणितीय शब्दों का प्रयोग करना चाहिए एवं उन्हें भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए उन्हें विभिन्न तरह के प्रश्न पूछ कर हम इसका अभ्यास करा सकते हैं. जैसे कम ज्यादा उससे ज्यादा इससे कम पहले बाद में बीच में आखरी में. पुणे एक बार कहूंगी की तुलना वस्तु वस्तुओं का ही करें बच्चों की तुलना आपस में कभी भी भूल कर ना करें इससे बच्चों के अंतर्मन में ईर्ष्या की भावना अनजाने में ही उत्पन्न हो जाती हैं. ना कर आते समय ध्यान रखें कि पहले एक-एक की संगति में तुलना वह क्रमबद्ध अति आवश्यक होती है जिससे की मात्रा का ज्ञान हो. जैसे कि एक समूह में 3 घंटे रखे दूसरे समूह में 4 घंटे रखे वह हमसे पूछे कि कौन से समूह में ज्यादा करते हैं बच्चे गिन पाएंगे तो गिन कर पता करेंगे और अगर नहीं मिल पाए तो एक-एक की संगति करके पता लगाएंगे.
मिलाने की क्रिया में जब वस्तु रंग आकार आकृति लंबाई भार इत्यादि के रूप में देखते हैं तब छोटी बड़ी उससे बड़ी उस से छोटी के रूप में चीजों को वर्गीकृत करके देखने लगते हैं इससे बच्चों में क्रम बद्ध की अवधारणा बनने लगती है इस प्रकार से गणिती अवधारणाएं बच्चों के अंदर विकसित होने लगती है. बच्चों को विभिन्न वस्तुओं को छोटे से बड़े के क्रम में क्रमबद्ध करने या जमाने के लिए कहे बच्चों से इसे बड़े से छोटे के क्रम में भी करवाएं साथ इस पर चर्चा भी करते चले जैसे कि कौन सबसे छोटा है कौन सबसे बढ़ा है इत्यादि प्रश्न से उन्हें इंगित करते चले वह प्रश्नों के द्वारा मार्गदर्शन करते चले इस प्रकार का क्रम बद्ध ता का गुण बच्चों में विकसित होते चलेगा बच्चों को इसके लिए पर्याप्त अभ्यास कराएं. एक उदाहरण के द्वारा बताया गया कि जब बच्चे छोटी बड़ी डंडियों को क्रमबद्ध रूप से आकृति के आधार पर जमाने के लिए कहा जाता है तो वे दो डांडिया तो बिल्कुल सही जमाते हैं छोटी रंडी के बाद उससे बड़ी रंडी रखते हैं लेकिन तीसरी डंडी वह छोटी रखते हैं.  ऐसी स्थिति में बच्चों को स्पष्ट करें की पहली और दूसरी दोनों डंडी के आधार पर तीसरी डंडी  का चुनाव करना चाहिए ना कि मात्र दूसरी डंडी के आधार पर. इसी प्रकार हम ध्वनि के आधार पर भी क्रमबद्ध ताकि गतिविधि बच्चों से करवा सकते हैं. जैसे कि चलते समय कौन सी गाड़ी या कौन सी चीजें ज्यादा आवाज करती है और कौन सी चीजें कम आवाज करती है किसकी आवाज किस से ज्यादा हार किस से कम होती है. अच्छे से अपने आसपास देखते हैं जैसे साइकिल चलती है तो कैसे आवाज होती है बाइक चलती है तो कैसे आवाज होती है और बस चलती है तो कैसे आवाज होती है किसकी आवाज तेज होती है किसकी आवाज कम होती है. बच्चों को यह भी विभिन्न गतिविधियां के द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिए कि वस्तुओं में सापेक्षता होती है अर्थात कोई वस्तु किसी वस्तु के समूह में सबसे बड़ा हो सकता है और वही वस्तु किसी दूसरे वस्तु के समूह में सबसे छोटा भी हो सकता है. यह सापेक्षता का सिद्धांत उसे और कहां-कहां पर दिखाई देता है यह भी  चर्चा करते समय स्पष्ट करें.
 इस प्रकार से क्रमबद्ध तक योग्यता के विकास में विभिन्न गणितीय अवधारणा का भी विकास होते चलता है. और इसके बहुत अच्छे से विकास हो इसके लिए हमें बच्चों के साथ बहुत सारी गतिविधि करवानी चाहिए साथ ही उनसे इस विषय पर चर्चा भी की जानी चाहिए बहुत सारे प्रश्न और उनके चर्चा के दौरान पूछते पूछते रहे एवं उन्हें भी विभिन्न प्रश्नों के उत्तर सेंड से खोजने का अवसर अवश्य दें.


👉  *कारण और प्रभाव के संबंधों को समझने की योग्यता का विकास*

 बच्चों में जन्म से ही प्राकृतिक रूप से  यह गुण कुछ कुछ पाया जाता है. हमें उनके इस जन्मजात को गुण को और भी बेहतर तरीके से विकसित करना है. जैसे कि बच्चा भूख लगने पर रोता है. बच्चे के रोने का कारण भूख है.  कोई ना कोई कारण अवश्य होता है एवं उस कारण का कोई न कोई प्रभाव भी होता है. जैसे कि बच्चे के रोने के बाद मां का उसे दूध पिलाना. इस प्रकार से कार्य कारण और उसका प्रभाव शालापूर्व बच्चे के लिए  वैज्ञानिक आधार देने व उसकी जांच करने का आधार होती है. बच्चों को किसी विशेष टिकरिया या घटना का क्या कारण है वह उसका क्या प्रभाव हो सकता है इस पर भी चर्चा करें एवं उन्हें उसके जवाब ढूंढने के लिए प्रोत्साहित करें बच्चों को क्यों कब क्या इत्यादि प्रश्न पूछने को प्रोत्साहित करते रहें एवं उनके सामने ऐसे प्रश्न आप भी पूछे. जैसे कि बच्चा अगर पूछे कपड़े कैसे सीखते हैं तो आपके पास जवाब है कि वो कपड़े धूप में सोते हैं लेकिन आप बच्चों को इसका कारण ढूंढने के लिए प्रेरित करें. आपसे मुझसे पूछे कि आप ही बताइए कि कपड़े कैसे सूखते हैं? कैसे सूख जाते हैं? इसका क्या कारण है? इस प्रकार से बच्चों की जिज्ञासा का सम्मान करें एवं उन्हें प्रेरित करें कि वे अपने प्रश्नों के जवाब खुद से ढूंढने का प्रयत्न जरूर करें. इससे बच्चे स्वयं उत्तर ढूंढने की कोशिश करेंगे जिससे क्योंकि तर्कशक्ति चिंतन शक्ति स्मरण शक्ति व खोजी प्रवृत्ति का बेहतर विकास होगा. एवं बच्चों में आत्मविश्वास का विकास होगा .



 इस चर्चा से यह स्पष्ट हुआ कि बच्चों में तुलना करना, कार्य, का कारण व उसका प्रभाव, एवं संबंधों को पहचाने की योग्यता का विकास विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से बहुत अच्छे तरीके से किया जा सकता है जिससे कि उनकी गणितीय अवधारणा स्पष्ट होती जाएंगी और गणितीय शब्दावली यों से समृद्ध होते जाएंगे बच्चे. साथ ही उनमें तुलना करने कार्य कारण और प्रभाव की जन्मजात गुण भी विद्यमान होते हैं. हमें बच्चों की जिज्ञासा का सम्मान करना है साथ ही उन्हें विभिन्न प्रश्नों के जवाब खुद ही ढूंढने के लिए प्रेरित भी करते रहना है हमें उन्हें विभिन्न प्रकार से प्रश्न पूछने हैं और उन्हें भी प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करना है.

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