प्रतिवेदन श्रंखला (1)

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प्रतिवेदन



30 /4 /2021 को स्पेशल चर्चा परिचर्चा का कार्यक्रम अपने नियत समय पर शुरू हुआ. आदरणीय श्री जीत मनी सर जी ने मंच संचालन की अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया.

 आदरणीय सेवती मैडम जी और  उर्मिला एकता मैडम जी के द्वारा बहुत ही बेहतरीन तरीके से पूर्व दिवस के चर्चा को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया गया.

 इसके पश्चात आदरणीय सुनील मिश्रा सर जी के द्वारा आज की चर्चा आरंभ की गई जिसमें कि सर जी ने पढ़ना क्या है, इसके अंतर्गत निधि ने शिक्षकों के विचारों को साझा किया. जिनमें से 12 मुख्य विचारों को पढ़कर बताया गया.. इसके पश्चात यह प्रश्न पूछा गया सर जी के द्वारा कि हम बच्चों को पढ़ना सिखाते समय क्या-क्या सिखाते हैं?
 जैसे कि अक्षर पहचान, ध्वनि पहचान, वर्तनी पहचान, मात्राएं,बाराखडी,संदर्भ में अनुमान, तथा कई तरीकों का उपयोग चित्र पर बातचीत व वाक्यों को लिखना पठनपूर्व पढ़ना,सामग्री पर बात करना इत्यादि बिंदु रखे गए जिनमें यह पूछा गया कि आप इनमें से तीन मुख्य कौन-कौन सी चीजों को इस्तेमाल करते हैं.

 बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान के अंतर्गत मुख्य रूप से पढ़ना का मतलब होता है जिज्ञासा के साथ पढ़ना खुशी-खुशी पढ़ना कुशल पाठक बनना और स्थाई पाठक बनना l मुख्य बिंदु आए सामने.

 इसके पश्चात दो उदाहरणों के द्वारा आज की चर्चा को स्पष्ट किया गया. जिनमें से

1. पहला उदाहरण दिया गया नंदिता की कक्षा का.

 जहां उसकी कक्षा में हो रहे गतिविधि के बारे में बताया गया. जहां पर विश्लेषण करने पर मुख्य बातें निकल कर सामने आई कि
1. कक्षा पूर्ण रूप से शिक्षक केंद्रीय थी.
2.  शिक्षक द्वारा बच्चों की भाषा को मानक भाषा का दर्जा नहीं दिया गया.
3. बच्चे की भाषा को उपयोगी नहीं माना गया और सिरे से नकार दिया गया.
4.  वातावरण नकारात्मक सोच पर आधारित रहा.5. शिक्षिका के अनुसार बच्चों के बताए गए जो शब्द सार्थक थे वही बच्चों को भी सार्थक मानना पड़ा.
6. क्यों के अनुभव पर आधारित शब्दों को स्थान नहीं दिया गया.
7. शब्दों का सही उच्चारण करना ही पढ़ना माना गया.
.8. पढ़ना एक मशीनी प्रक्रिया का हिस्सा  माना गया.


2. उदाहरण:-
 अक्षय की कक्षा का लिया गया. जहां कि अक्षय जी कल जो गांव में आंधी आई थी उसके बारे में बच्चों से बात कर रहे थे. इस क्लास में बच्चे उत्सुक थे अपनी बात कह बताने के लिए लालायित थे. चर्चा के बाद सर ने बच्चों को चित्र बनाने के लिए कहा चर्चा से संबंधित और बच्चों का निरीक्षण करते रहे एवं आंधी के बारे में बहुत सारी बातें की सब ने मिलकर. सर जी ने बच्चों के द्वारा बताई गई बातों को उनके शब्दों में ही बोर्ड पर लिख दिया बाद में सर ने उन लिखे हुए शब्दों को उंगली रख रख कर पढ़ कर बच्चों को बताया दूसरी बार सब बच्चों और शिक्षक ने मिलकर सारे वाक्यों को पढ़ा. बाद में सर ने उन वाक्यों को एक बड़े कागज पर लिखकर बच्चों की पहुंच के अंदर दीवाल में लगा दिया ताकि बच्चे उसे कभी भी पढ़ सके.

 अच्छे सर जी की कक्षा का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि
1. कक्षा बाल केंद्रित था.
2. शिक्षक का मानना था कि बच्चे भाषा का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करते हैं.
3. बच्चों के अनुभव को पूरा महत्व दिया गया
4. शिक्षक का मानना था कि बच्चे अपनी बात को समझ से अपनी पूर्व ज्ञान से जोड़कर करते हैं.
5. बच्चों की अनुमान लगाने की क्षमता का पूर्ण उपयोग किया गया.
6. माना गया कि समझना एक सार्थक प्रक्रिया है.
7. पढ़ना एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कि बच्चे अनुमान पूर्व अनुमान इत्यादि का उपयोग करने के लिए करते हैं.
8. बच्चों की बातों का और पढ़ने का में एक भावनात्मक संबंध होता है.
9. सक्षम पाठक बनने में परिवेश अनिवार्य भूमिका निभाता है यह माना गया.
10. पढ़ना एक समग्र प्रक्रिया है दो एवं वाक्यों को   पहचानना समग्रता में ही संभव है.
11. शिक्षक का व्यवहार पूर्ण रूप से सकारात्मक है.

 इन दोनों उदाहरणों के द्वारा हमारे सामने कुछ प्रश्न उभर कर सामने आए जो इस प्रकार से रहे.

1. क्या यह पढ़ना सीखने की सही प्रक्रिया है?

2. क्या इन अभियानों के द्वारा बच्चे अन्य पठन सामग्री से जुड़ पाएंगे,?

3.  क्या पढ़ाने का यह तरीका बच्चों को उनकी पूर्ण अभिव्यक्ति का अवसर दे रहा है?

4. क्या इन गतिविधियों से मात्रिक अमात्रिक उद्देश्यों की प्राप्ति हो रही है अर्थात जैसे बच्चे मजा लेकर पढ़ रहे हैं बच्चे में मजे से सीख रहे हैं. बच्चों को सब समझ में आ रहा है यह बच्चे इन शब्दों से अपने आप को और अपने अनुभव को जोड़ता रहे हैं इत्यादि.

5.  क्या यह तरीका पढ़ने का सही माहौल बना पा रहा है?

6. क्या बच्चे इस तरह के माहौल में पढ़ना सच में पसंद करते हैं  ?

7. क्या इस प्रकार से कक्षा बाल केंद्रित बन पा रहा है.


8.  क्या इस कक्षा में बच्चों की पूर्व ज्ञान का पूर्ण उपयोग किया जा रहा है ?

9.क्या बच्चे लिखित सामग्री और को अपने अनुभव से जोड़कर देख पा रहे हैं  ?

10. क्या बच्चे लंबे समय तक इस प्रकार की गतिविधि को करने में रुचि प्रदर्शित कर पाएंगे  ?



समीक्षा :-  दोनों कक्षाओं का उदाहरण देखने पर हम पाते हैं कि नंदिता के बढ़ाने के तरीके में हमें काफी कुछ कमियां नजर आती है जो बच्चों के लिए बहुत उबाऊ होती है. जेल में रुचि नहीं ले पाते क्योंकि यह उनके पूर्व ज्ञान से और उनके अनुभव से जुड़े हुए नहीं रहते हैं उनकी भाषा को नकार दिया  जाता है. इस प्रकार की  कक्षा में बच्चे आन आत्मक जुड़ा महसूस नहीं कर पाते. केवल शब्दों के सही उच्चारण पर ही जोर दिया जाता है जहां कक्षा का माहौल शिक्षक केंद्रित हो जाता है और बच्चों के लिए वह उबाऊ प्रक्रिया लगती हैं. इसके विपरीत अक्षय की कक्षा में हमने देखा कि जब-जब शिक्षक किसी किसी चीज को बच्चों के अनुभव से जोड़ कर उस पर बात करते हुए बच्चों के सामने रखते हैं तो बच्चे बहुत उत्साह ही रहते हैं लालायित रहते हैं अपनी बात बताने के लिए. हमें बच्चों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए एवं उनकी भाषा को मान्यता देते हुए उसे कक्षा में हमारे बीच स्थान देना चाहिए जिससे कि बच्चों को आत्मविश्वास का भाव आता है.  हमें बच्चों के साथ कक्षा में कार्य करते हुए अथवा गतिविधि करते हुए उनके अनुभव एवं पूर्व ज्ञान का पूरा उपयोग करते हुए गतिविधि करना चाहिए. उनके किसी शब्द अर्थ व वाक्य को नकारना नहीं चाहिए. अगर ऐसा करेंगे तो उनका आत्मविश्वास कम होता है एवं वे कक्षा में जुड़ा महसूस नहीं कर पाते हैं. समग्र पाठक बनने में बच्चे का परिवेश महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हम पाते हैं कि पढ़ने की प्रक्रिया एक समग्र प्रक्रिया है जब हम इसे टुकड़ों में तोड़ कर पढ़ाते हैं तो बच्चे उससे कोई भी संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं लेकिन जब हम उसे पूर्णता में पढ़ाते हैं तो बच्चे उसे सहज भाव से जुड़ पाते हैं और अपने आप अनुभव को खुले मन से अभिव्यक्त कर पाते हैं.


निष्कर्ष :- पढ़ना सिखाते समय बच्चों के पूर्व ज्ञान का, अनुभव का पूर्णा उपयोग करना चाहिए. उनकी भाषा का सम्मान करना चाहिए. उनकी बातों को महत्व देना चाहिए. उनके द्वारा कही गई बातों को उंगली रखकर पढ़ कर बताना चाहिए ताकि बच्चा उस शब्द से उस वाक्य से  अपना जुड़ाव महसूस कर पाए . बच्चों को लिखित भाषा के सार्थक और उपयोगी अवसर उपलब्ध कराने चाहिए .जिससे कि बच्चा बहुत तीव्र गति से पढ़ना सीख सकेंगा.

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