मैं व्यथित हूं

शीर्षक - मैं व्यथित हूं.......
 👉 पीड़ा में तड़पते हुए अपनों को,
टूट कर बिखरते हुए सारे सपनों को,
 देख कर मैं व्यथित हूं...........
👉निस्तब्ध,स्तंभित की वेदनाओ  को, साथ ही लोगों की असंवेदनाओं को, देखकर मैं व्यथित हूं.............
👉पर पीड़ा में अवसर तक रहे लोगों को,सांसो की कालाबाजारी करते सौदेबाजों को,
देख कर मैं व्यथित हूं................
👉उन्होंने देखा था  लाशों पर चढ़कर आजादी आई थी,
 हम देख रहे  आज लाशों पर गरमाई तुच्छ राजनीति को,
 देख कर मैं व्यथित हूं.................
👉 अब तो जिंदगी और मौत पर भी आरक्षण का दांव चल रहा,
 हमारी ही आस्तीन में जाने कब से  फरेबी  सांप पल रहा,
 देख कर मैं व्यथित हूं...............
👉 कोई तरस रहा हवा को तो कोई तरस रहा दवा को,
 पर क्या फर्क पड़े देश के लापरवाहो को,गद्दारों को,
देख कर मैं व्यथित हूं...............
👉लोग पढ़ लिखकर परंपराओं संस्कारों से दूर हो गए,
 सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे भद्राणि पश्यंतु के भाव अब लुप्त  हो गए,
 देख कर मैं व्यथित हूं..............
👉कहां गई वो रिश्तो की गर्माहट वह भावनाएं, वह आत्मीयता,
इस दुख में मौका परस्ती की दिखाई पड़ रही कैसी यह विडंबना,
देखकर मैं व्यथित हूं..................
👉इधर मर रहे सब बीमारी से,उधर हर तरफ कत्लेआम हैं.
हर जगह घोटालेबाजी इधर भी शमशान उधर भी  श्मशान हैं.
देखकर मैं व्यथित हूं............
👉खून हो रहा मानवता का, शांति से मन वीरान हैं.
 आज फिर भी चुप क्यों हिंदुस्तान हैं देख कर मैं व्यथित हू..................
👉असहिष्णुता की आग में आज जल रहा पूरा बंगाल है.
 तथाकथित फिल्मीस्तानी  देशभक्त आज क्यों बेजुबान हैं.
 देख कर मैं व्यथितहूं.....................
👉इस वायरस ने आज पुनः सबको कर दिया बेहाल है.
 खींच लिया इसने सारे रंग बदलते गिरगिटों  की खाल है.
 देख कर मैं व्यथित हूं.................
👉हर तरफ त्रासदी,हर तरफ मच रहा हाहाकार है.
 हमसे रूठ चुके क्यों अब हमारे संस्कार हैं.
देख कर मैं व्यथित हूं................
👉अब कहां गई वह वसुधैव कुटुंबकम की भावना,
 यहां अब हर किसी को सत्ता धन की है कामना.
देख कर मैं व्यथित हूं.................
👉राजनीति की चिट्ठी लिखना छोड़ कुछ तो अच्छा काम करो.
 अब तो षड्यंत्र बंद करो, तुम जैसों को धिक्कार है.
देखकर मैं व्यथित हूं..................
👉 हर तरफ भ्रम,हर तरफ लालच की बहार है.
 जाने कितने अपने चले गए,  कितनों को  इंतजार है.
 देख कर मैं  व्यथित हू...................
👉आज इंसान कितना बेबस कितना लाचार है.
 बद से बदतर होते जा रहे,किसी के काबू में अब नहीं हालात है.
 देख कर मैं व्यथित  हूं.............
👉बाहर खतरा है मत निकल, पर तू तो पतंगा दीवाना है.
 क्यों नहीं देख रहा आज हर गांव हर शहर हो रहा वीराना है.
 देख कर मैं व्यथित हूं....................
👉घर पर रहो,सुरक्षित रहो,बात हमारी मान लो. जो कुछ जितना बचा है अब तो  उसको प्यार से संभाल लो.
 देख कर मैं व्यथित हूं....................

🙏 लोकेश्वरी कश्यप
 जिला मुंगेली

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