वृद्धावस्था
वृद्धावस्था
के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
जाने कितने गौरव के काम किये,
जाने कितना तपे, तपती दुपहरि से शाम किये.
सबके मुँह में निवाला जाये,
जाने किन- किन रीति से इनका इंतजाम किये.
माता - पिता यू ही वृद्ध नहीं होते
वृद्धवस्था की ऐ झुर्रिया, बालो की ऐ सफेदी.
व्यक्ति के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
बच्चों की राहत भरी नींद के लिए,
जाने कितनी रातें अपनी तमाम किये.
बच्चों की चाहतें पूरी करने को,
जाने अपने कितने अरमान कुर्बान किये.
माता - पिता यूँ ही वृद्ध नहीं होते
वृद्धवस्था की ऐ झुर्रिया, बालो की ऐ सफेदी.
व्यक्ति के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
बच्चों के सुंदर, महंगे कपड़ो के लिए,
अपने फटे कपड़ो को सीते रहें.
जब- जब बच्चों पे मुसीबत आई तो,
अपनी लाचारी पे भीतर ही भीतर घुटते रहें.
माता - पिता यूँ ही वृद्ध नहीं होते
वृद्धवस्था की ऐ झुर्रिया, बालो की ऐ सफेदी.
व्यक्ति के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
बच्चों की ऊँची शिक्षा की खातिर,
अपने सिर पे कर्ज हजारों लिए.
बच्चों की जाने कितनी जिद पूरी करने को,
अपने सारे शौख को दिल में दबाते रहें.
माता -पीरा यूँ ही वृद्ध नहीं होते.
वृद्धवस्था की ऐ झुर्रिया, बालो की ऐ सफेदी.
व्यक्ति के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
जब तक शक्ति रही तन में,
इससे काम भरपूर किये.
अपनी सारी जिम्मेदारी निभाई,
कभी इनसे ना भागे ना शिकवा किये.
माता - पिता यूँ ही वृद्ध नहीं होते.
वृद्धवस्था की ऐ झुर्रिया, बालो की ऐ सफेदी.
व्यक्ति के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
अब जब शरीर की शक्तियां देने लगी है जवाब,
बच्चों को अब उनकी हर बात लगने लगी है खराब.
अपनें सारे अरमान अपने बच्चों पे वार दिया,
उम्र के इस गौरवान्वित पल में बच्चों नें क्या दिया.
माता - पिता यूँ ही वृद्ध नहीं होते.
वृद्धवस्था की ऐ झुर्रिया, बालो की ऐ सफेदी.
व्यक्ति के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
बहु को क्यों दोष देना, वो तो दूसरे घर से आई है,
यहां खुद के बेटे को अब माता -पिता की बात रास नहीं आई.
अगर बेटा कहता बहु से सुनो मेरी प्राणप्यारी, मुझसे पहले माता -पिता की आदर और सेवा करना.बहु बातो के मर्म को जरूर समझती.
पर बेटा सीना तान कभी ऐ कह ना पाया,
जिसका कड़वा फल माता -पता नें इस उम्र में पाया
माता - पिता यूँ ही वृद्ध नहीं होते.
वृद्धवस्था की ऐ झुर्रिया, बालो की ऐ सफेदी.
व्यक्ति के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
छोटी सी बात कहती हू, सुन लो जरा ध्यान लगा,
बहु अगर चाहतें है संस्कारी बेटे को भी संस्कार सिखाओ.
जो शिक्षा देते हो बेटी को वह मिले बेटों को भी
बेटी और बेटों को भी हर कार्य में दक्ष बनाओ.
माता - पिता यूँ ही वृद्ध नहीं होते.
वृद्धवस्था की ऐ झुर्रिया, बालो की ऐ सफेदी.
व्यक्ति के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
बहुत लम्बा संघर्ष किया है जीवन की आपा धापी में,
मत भूलो उनके अहसानो को उनके त्याग को
लिख लो जीवन की सुंदर कॉपी में.
उनको दों इतना लाड,प्यार और सम्मान,
जिनके है हम सबके माता - पिता अधिकारी.
माता - पिता यूँ ही वृद्ध नहीं होते.
वृद्धवस्था की ऐ झुर्रिया, बालो की ऐ सफेदी.
व्यक्ति के सारे जीवन के अनुभवों की है पूंजी.
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
24/08/2021
लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली छत्तीसगढ़
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