इंसान के रंग

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कहानी

 शीर्षक : इंसान के रंग

 बहुत पहले समय की बात है l सभी फूलों का रंग एक ही था l वे सफेद रंग के होते थे l उनकी पहचान केवल उनकी खुशबू और पत्तों से होती थी l लेकिन इंसान सभी अलग-अलग रंग के होते थे l कोई काला,कोई सफेद, कोई गुलाबी, कोई लाल, कोई हरा,कोई नीला, कोई पीला, कोई बैगनी, कोई नारंगी l जैसे उनके रंग होते थे l वैसे ही वे अपने नाम के साथ सरनेम लगाते थे l जो लाल रंग का होता,वह अपने नाम के आगे लालवानी लगाता था l
 जो नीले रंग का होता था वह अपने नाम के साथ लिलवानी लगाता  l लोगों के नाम ऐसे होते थे जैसे जेठा लाल, मंसूर हरियर, वेद लाल, प्रभा नीलवानी, हरीश पिलवानी l जिसे जो रंग पसंद होता था l वह उसी रंग के लडके या लड़की से शादी करता था l कई बार ऐसा होता था कि वह जिस रंग का बच्चा चाहते थे उसी रंग का होता था l कभी-कभी उनके बच्चे उस रंग के नहीं हो पाते थे कोई दूसरे रंग की हो जाते थे तो घर में बहुत झगड़े होते थे l लोगों के बीच रंगों को लेकर बहुत झगड़े होने लगे l सभी को अपना ही रंग पसंद आता था किसी दूसरे का रंग नहीं पसंद आता था l ब्रह्मा जी ने सोचा, मेरी बनाई इतनी सुंदर दुनिया में इतनी रंग-बिरंगे इंसान हैं l पर वे सभी लड़ते झगड़ते रहते हैं और खुश नहीं रह पा रहे हैं l इधर मैंने फूलों को बिना रंग के बनाया है l केवल पहचान के लिए फूलों की खुशबू को अलग रखा है फिर भी फूल सभी तरफ खुशबू फैलाते हैं और कितना खुश रहते हैं l मेरी बनाए रंग बिरंगे इंसानों से ज्यादा अच्छे तो यह बेरंग फूल हैं l तो क्यों ना मैं इन फूलों को उपहार स्वरूप इन इंसानों के सारे रंग दे दूं l इन इंसानों से सजा के रूप में इनके सारे रंग छीन लूं l इन्हें इतने सुंदर रंग पाने का कोई अधिकार नहीं है l ब्रह्मा जी ने यह सोच कर सारे इंसानों को श्राप दिया कि जाओ अब से तुम्हारे खूबसूरत रंगों को मैं सभी फूलों को देता हूं l

 तब से इंसान के सारे रंग फूलों को मिल गए और इंसानों के रंग उनके स्वभाव में दिखाई देने लगा l पर इंसान नें अभी भी सबक नहीं लिया है l वे अब भी काले गोरे रंग को लेकर आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे हुए हैं l अबकी बार पता नहीं ब्रह्मा जी इंसान से क्या छीन ले l


 अंशिका कश्यप
 कक्षा सातवीं
 शासकीय माध्यमिक शाला सूरजपुरा कला
 विकासखंड पंडरिया 
 जिला कबीरधाम
 राज्य छत्तीसगढ़

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