कातर आँखें
लघुकथा
शीर्षक : कातर आँखें
गिरीश के पिता नहीं थे l ममता से शादी के बाद गिरीश को अपने ससुर जी से बेहद लगाव हो गया l गिरीश जब भी ससुर जी से मिलते उनको अपने पिता सा मान सम्मान देते l उसे लगता था ईश्वर नें एक पिता को उनसे दूर कर दिया पर एक और पिता उनको दिया l ससुर दामाद की जोड़ी को देखकर लोगो के सीने में साँप लोटते थे l दोनों को अलग करने की कोई कसर रिश्तेदारों नें नहीं छोडी थी l उसके ससुर जी को भी दामाद के रूप में एक बेटा मिल गया था l दोनों एक दूसरे की सलाह के बगैर कुछ ना करते l समय का चक्र बदलते देर नहीं लगती l समय नें करवट बदली l अचानक उनके ससुर जी लकवा के शिकार हो गये l वे हताश हो गये l गिरीश का काम धाम में मन ना लगता l उसने ससुर जी की जी जान से सेवा की l उसके ससुर जी को भी उसके और पत्नी के अलावा और किसी से कोई उम्मीद नहीं रही lउनके साथ छोड़ जाने मात्र की कल्पना से गिरीश का दिल बैठ सा जाता l 2 साल की कठिन सेवा सुश्रुशा के बावजूद वे और साथ ना निभा सके l उनके जाने से गिरीश टूट सा गया l मानो ईश्वर नें उसके पिता का साया उसके सर से एक बार फिर उससे छीन लिया था l ससुर जी के जाने के बाद रिश्तेदारों नें फिर से अपना रंग दिखाना शुरू किया l बिरादरी में ये कहकर उसके ऊपर इल्जाम लगाया जाने लगा की उसने अपने ससुर जी की कोई सेवा नहीं की l यदि सेवा की होती तो आज वे जीवित होते l उसकी सेवा करने के बहाने वह उसकी सम्पत्ति चुराना चाहता था l ऐसे उल जलूल शब्दों से गिरीश टूट सा गया l एक तो पिता तुल्य ससुर जी का जाना ऊपर से ऐसे इल्जाम l उसके दिल का हाल बस वह और उसकी पत्नी ही जाने l वह लोगो से कितना लड़े l कितनो को जवाब दे l वह थक चूका था l उसने एक निर्णय लिया बस अब और नहीं l अगर रिस्तेदार ऐसे होते है तो उसे नहीं चाहिए ऐसे रिस्तेदार l उसने सबसे दुरी बना ली l धीरे - धीरे जिंदगी पत्रिका पर आने लगी पति - पत्नी की ,पर गिरीश को खोजती ससुर जी की वह कातर आँखें उसे अब भी याद आती है l उनकी याद आने पर गिरीश के दिल से बस यहीं आवाज आती है " ये मेरे दोस्त लौट के आ जा, बिन तेरे जिंदगी अधूरी है............. "
लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़
25/02/2022
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