मेरे कृष्णा

मेरे कृष्णा 


एक हवा के झोंके से ताश का महल बिखर जाता है l
 जब टूटता है दिल कहां किसी को नजर आता है  l
 दिल के अरमान सारे आंसुओं में बह जाता है  l
 कृष्णा तेरी दर्शनों की आस में उम्र निकला जाता है l


 कितने अरमानों से सपनों का महल सजाया है l
 इसके एक एक कोने को प्रेमसुगंध से महकाया है l
विरह में निकले लड़ियों की मोतियों से 
इसे चमकाया है l
तेरा प्रेम कृष्णा मेरे रोम- रोम में समाया है l


मीत मेरे तुमसे दुरी अब एक पल सहा नहीं जाता है l
कृष्णा तेरा विरह इस पिंजर को जलाता है l
अब आ भी जाओ कृष्णा, तुमने बहुत सताया है l
 तेरे दर्शनों की आस में मैंने पलकों को बिछाया है l


 तुम मुझसे दूर क्या हुए मोहन अधूरी हो गई मेरी जिंदगी  l
टूट रहा है अरमानों का महल, बिखर रहे है मेरे सपने l
 तुम ही आस हो तुम ही सांस हो तुम हो मेरी जिंदगी l
कान्हा मेरे टूटने से पहले मूझे अंक में भर ले अपने l


तु ही बता तेरे बगैर मेरा जीना भी क्या जीना है l
तुम्हारे आने से पतझड़ में भी बहार आ जाता है l
तेरे विरह से हर सपना ताश के पत्तों सा बिखर जाता है l
तेरे दर्शन से कृष्णा मुरझाया मुखड़ा मेरा खिल जाता है l




लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़
25/02/2022

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