शक
शक
दो अक्षर का यह साधारण साधारण सा शब्द अपने में कितना गूढ़ रहस्य समाए हुए हैं l इसके ऊपर जाने कितनी बातें कहीं गई हैं और कितने पन्ने रंगे गये हैं lइसके ऊपर जाने कितनी जिंदगियां भेंट चढ़ गई l यह ऐसा असाध्य रोग हैं, जो अगर किसी को हो जाएं तो उसका जीवन धीरे -धीरे नरक बना देता हैं l कमाल की बात यह है कि जिस से यह रोग होता है उसे पता भी नहीं चलता कि कब और कैसे धीरे -धीरे उसकी जिंदगी के सारे सुखचैन हवा हो जाते हैं l यह शक कभी अकेले नहीं आता l यह अपने साथ में अपनी सहचरी को भी लाता है l जी हां ठीक समझे! इसकी सहचरी है भय,भ्रम और क्रोध l जिस व्यक्ति को सबका असाध्य रोग लग जाता है l वह सदा भय से ग्रसित,भ्रमित और क्रोधित रहता है l हमेशा उसके मन में एक अनजाना भय बना रहता है और यही है उसे भ्रमित करते रहता है एवं उसके क्रोध को अंदर ही अंदर सुलगाते रहता है l धीरे-धीरे उसके सारे सुखचैन उसकी खुशियां इस निष्ठुर शक की भेंट चढ़ जाती है l
स्नेक की कोशिका असाध्य रोग लगता है वह तो तन मन आत्मा से रोगी हो ही जाता है l उस व्यक्ति के साथ-साथ उसके साथ रहने वाले व्यक्ति भी इस रोग की पीड़ा और तकलीफ से गुजरते हैं l क्योंकि उस व्यक्ति के शक में भ्रम क्रोध का शिकार उसका पूरा परिवार जाने अनजाने में होते रहता है l मजे की बात तो यह होती है कि उस व्यक्ति को यह आभास ही नहीं होता है कि उसके इस रोग की वजह से उसका परिवार उसका सुखचैन उसकी खुशियां उसका मान सम्मान सब कुछ दांव पर लग गया है l वह अपने शक की आभासी दुनिया में ही हर पल भ्रमण करता रहता है और बेहद तकलीफ भरा जीवन जीता है l उसका जीवन तकलीफ भरा इसलिए कि वह वास्तविकता से दूर केवल आभासी दुनिया और आभासी अनुभव के आधार पर बेहद पीड़ा भोकते रहता है उसका शक उसके मन, मस्तिष्क को हर समय पीड़ित करते रहता हैl और यही पीड़ा उसके परिवार वालों को उसके क्रोध के रूप में भुगतना पड़ता है l
यह शक का असाध्य रोग कभी भी किसी को अपनी चपेट में ले लेता हैl इसकी चपेट में अधिकतर वही लोग आते हैं जो अपने से ज्यादा दूसरों पर यकीन करते हैं और दूसरों की बातों में आ जाते हैं l जो अपने स्वविवेक का इस्तेमाल नहीं करते हैं l जो तर्क की कसौटी पर विभिन्न तथ्यों को नहीं कस पाते हैं l यह समान रूप से स्त्री पुरुष किसी को भी अपनी चपेट में ले लेता है l
माता पिता को अपने बड़े होते हुए पुत्र और पुत्री पर शक हो सकता है l सास को अपनी बहू पर और बहू को अपनी सास पर शक हो सकता है l पति को अपनी पत्नी पर और पत्नी को अपने पति पर शक हो सकता है l प्रेमी अपनी प्रेमिका पर और प्रेमिका अपने प्रेमी पर शक कर सकते हैं l यह शक हर उस जगह पर अपनी साख और धाक जमा लेता है, जहां एक दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना जरा सा भी हो l यह शत्रु पीडा नाम सबसे पहले उसे ही जगाता है जो अपने साथी पर अपने सामने वाले पर विश्वास रखता हो l यह शक विभिन्न चीजों के लिए हो सकता है, जैसे किसी को जायदाद को लेकर, प्रेम को लेकर, चाल चलन को लेकर रहन-सहन को लेकर व्यक्तित्व को लेकर बातचीत को लेकर या किसी गुप्त रहस्य को लेकर और भी इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं l
इसके कारण चाहे जो भी हो, वह जिस व्यक्ति को शक होता है उसे पूरी तरह से धीरे-धीरे अंदर से खोखला कर देता है वैसे ही जैसे घुन या दीमक लकड़ी को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है l ऊपर से देखने पर सब कुछ सामान्य और सही दिखता है किंतु अंदर ही अंदर वहां खोखला और बेकार होते जाता है l
इस शक का सबसे ज्यादा भयानक और देखा जाने वाला रूप होता है पति का अपनी पत्नी के लिए शक करना l इसके मूल में चाहे जो कुछ भी हो, चाहे पति को पत्नी के प्रेम पर शक हो उसके चरित्र पर शक हो उसकी सच्चाई और पतिव्रता पर शक हो वह उस पुरुष को और उसकी पत्नी को साथ ही साथ उसके बच्चों को अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा पीड़ित करते रहता है l वह व्यक्ति स्वयं तो सुख और चैन को त्याग कर भ्रम की दुनिया में हर पल विचरण करते रहता है साथ ही वह अनजाने भय से ग्रसित होकर चिड़चिड़ा क्रोधी और निष्ठुर होकर अपनी पत्नी को भीतर ही भीतर अपने भावों से अपनी बातों से और अपने गुस्से से प्रताड़ित करते रहता है और इसे वह सही भी समझता है l वह अपनी पत्नी को एक वस्तु की तरह देखने लगता है l वह अपनी पत्नी की हर बात हर कार्य प्रणाली में कोई न कोई नुक्स खोजने की कोशिश करता है l खुद तो अपनी खुशियां तबाह कर लेता है साथ ही अपनी पत्नी की हर खुशी को निगल लेता है l बेवजह अपनी पत्नी पर अनावश्यक दबाव और अनावश्यक रोक-टोक लगाने लगता है l
शक से ग्रसित ऐसे व्यक्ति कभी अपनी पत्नी को चैन से नहीं जीने देते और ना ही उसे जीवन में कोई खुशी दे पाते हैं l वे यह भूल जाते हैं कि उनकी पत्नी का एक स्वतंत्र अस्तित्व है वह उसकी पत्नी होने के साथ-साथ एक स्वतंत्र व्यक्ति भी हैं l उसका एक स्वतंत्र वजूद और स्वतंत्र अस्तित्व भी है l वह मात्र उसकी पत्नी नहीं है, वह एक इंसान भी है जिसके अपने सुख अपने दुख अपनी खुशियां अपने तकलीफ, अपनी इच्छाएं अपनी चाहत हो सकती हैं l उसे भी अपने जीवन को अपने तरीके से जीने की आजादी मिलनी चाहिए l उसे भी अपनी जिंदगी मैं अपने तरीके से खुशियां पाने का और खुशियों को सहेजने का अधिकार हैl सबकी व्यक्ति अपने पत्नी को मात्र अपनी एक वस्तु के रूप में देखता है जो उसे खोना नहीं चाहता और उसे अपने हिसाब से चलाना चाहता हैl ऐसा नहीं है कि शक्की पति ही अपनी पत्नी के लिए ऐसा करता है l बल्कि सच्ची पत्नियां भी अपने पति के जीवन को इसी तरह से दूभर बना देती हैं और उसे अपने इशारों पर नाचने के लिए मजबूर कर देती हैं l शक से चाहे पत्नी ग्रसित हो चाहे पति या कोई भी व्यक्ति वह जिस व्यक्ति के प्रति शक करता है उसकी जिंदगी को अंदर ही अंदर बहुत प्रभावित करता है और उसकी खुशियों को पूरा निगल जाता है l वह उस पर पूर्ण रूप से अधिकार प्राप्त कर लेना चाहता है और उस पर हावी होने की पूरी कोशिश करता है l जो व्यक्ति सेट की चपेट में एक बार आ गया वह ताउम्र इससे उबर नहीं पाता l
शक से ग्रसित व्यक्ति को जिस पर उसे शक होता है उसके प्रति हर पल भर बना होता है कि कहीं वह उससे दूर ना हो जाए वह उसे खोना नहीं चाहता l वह यह भूल जाता है कि जिसकी प्रति वह शक कर रहा है वह भी एक स्वतंत्र शरीर व जीवन का मालिक है l उसे अपनी जिंदगी में अपने स्वयं के फैसले लेने का पूर्ण अधिकार है l कभी-कभी उसका यह डर उसका यह शक ही उसे अपनों से दूर कर देता है l उसकी प्रताड़ना उसके व्यवहार से लोग दुखी होकर उससे दूरी बनाने लग जाते हैं l एक दिन ऐसा आता है कि पत्नी या पति जिस पर सामने वाला शक करता है वह यह सोच लेता है कि चाहे मैं जैसा भी रहूं मुझ पर यही आरोप और शक हरदम किया ही जाएगा, चाहे मैं कितना ही पवित्र जीवन क्यों न जीऊ l तो फिर इतना तकलीफ भरा जीवन जीने से क्या मतलब l इससे अच्छा मुझे अपना जीवन ही समाप्त कर देना चाहिए या फिर इस व्यक्ति से सदा के लिए अलग हो जाना चाहिए l तभी मुझे इस शक रूपी पीड़ा से मुक्ति मिल सकती हैं l कई बार जिस व्यक्ति पर शक किया जाता है वह व्यक्ति अपनी पत्नी से तलाक ले लेता है l आप मुझ पर इतना शक करती हो इससे अच्छा यही है कि मैं आप से अलग हो जाऊं यह सोच कर l लेकिन महिलाएं अपने पति से अलग अपना अस्तित्व समझती ही नहीं है और वह निरंतर अपने पति के प्रेम में पड़ी रहती हैं और उनके द्वारा दी जाने वाली तकलीफ पीड़ा शुभम को सहते रहती हैं कि कभी तो उनके पति को उनके प्रेम की सच्चाई और पवित्रता पर यकीन होगा l और वे पूरा जीवन इसी आशा पर बिता देती हैं कि 1 दिन उसके पति को उसके प्रेम पर विश्वास होगा l कि महिलाओं की जीवन में यह सुखद पल आता है कि उसके पति को उसके चरित्र पर उसके प्रेम पर यकीन हो भी जाता है l लेकिन कई बदकिस्मत पत्नियां अपने पति का भरोसा और प्यार पाने के लिए ताउम्र उनकी दिए हुए तकलीफ से पीड़ित होती रहती हैं और एक दिन उस तकलीफ को न सह पाने की वजह से अपना जीवन अपने ही हाथों समाप्त कर लेती हैं या बहुत ज्यादा तकलीफ नहीं होने की वजह से किसी गंभीर वारदात को अंजाम दे बैठती हैं l
तकलीफ में इतने क्षुब्ध और पागल हो गई होती हैं कि उन्हें क्या सही है क्या गलत है इसका कोई भी महान नहीं हो पाता हैl उनकी सोचने समझने और तर्क करने की क्षमता पूरी तरह से समाप्त हो गई होती है l
इस प्रकार से शक्की व्यक्ति अपना जीवन तो तबाह करता ही है साथ ही अपने काल्पनिक भ्रम और काल्पनिक तक की वजह से अपने जीवन साथी का जीवन और उसकी खुशियां पूरी तरह से तबाह कर देता है l उसका जीवन साथी उसका हमसफर जो उसके हर पल उसके सुख दुख का साथी होता है वह उसी के हाथों उसी के दिए हुए दर्द से उसकी खुशियां और कई बार उसका जीवन भी खत्म कर देता है l जब उसका हमसफर इस दुनिया में नहीं होता है फिर वह पागल हो जाता है कि उसकी वजह से उसकी जीवन साथी का यह अंजाम हुआ हैl पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत l
इस प्रकार से यह शक रूपी दानव सब कुछ, सुख, सम्पत्ति, मान सम्मान, कीर्ति सब कुछ ग्रस लेता है l इतने में ही इसका असर समाप्त नहीं होता है l इसके बाद शुरू होता है बच्चों का दारुण दुख,तकलीफ, पीड़ा, असुरक्षित जीवन, असुरक्षित भविष्य l और इस सब वेदना हो तकलीफ होती रहो दर्द का एकमात्र कारण होता है परिवार में किसी एक व्यक्ति के मन में उत्पन्न हुआ शक रूपी असाध्य रोग l
अतः समझदारी इसी में है कि व्यक्ति कान का कच्चा ना बने l उसे अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य पर अपने ही समान पूरा यकीन हो l अपनी फ्रेंड की काबिलियत पर और अपने परिवार के प्रत्येक व्यक्ति की काबिलियत पर उसके प्रेम पर उसकी समर्पण पर और उसके काम पर पूरा यकीन हो l उसके मन में अपने परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति सम्मान,प्रेम, आत्मविश्वास, और अटूट विश्वास हो l प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक के चरित्र पर पूर्ण विश्वास और गर्व हो , किस के परिवार का उस प्रत्येक सदस्य कभी भी उसके गर्व को उसके मान सम्मान को आहत नहीं कर सकता किसी भी परिस्थिति में l
यदि व्यक्ति यह मान ले कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व दी है जिससे उस व्यक्ति को अपने तरीके से अपना जीवन जीने का अधिकार है l तो शक जैसी कोई चीज कभी किसी के मन में आ ही नहीं सकती l वैसे भी जैसे हमें अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीना अच्छा लगता है वैसे ही सामने वाले को भी उसकी जिंदगी उसके तरीके से जीने की आजादी मिलनी चाहिए चाहे वह पत्नी हो चाहे पति हो चाहे पुत्र हो पुत्री हो बहू हो बेटा हो चाहे कोई भी हो l हम किसी भी व्यक्ति को रिश्तो में हम जकड़ नहीं सकते हैं l जहां प्यार होता है सम्मान होता है और एक दूसरे के प्रति अटूट विश्वास होता है वहां शक के लिए कोई स्थान नहीं होता l प्रेम जीवन को उन्मुक्त उड़ान देने के लिए है ना कि जबरदस्ती के पिंजडे में बंदी बनाने के लिए l
लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़
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