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Showing posts from December, 2021

नदी या जल स्त्रोतों में अस्थियो का विसर्जन की परम्पराऔर विज्ञान

शक

शक  दो अक्षर का यह साधारण साधारण सा शब्द अपने में कितना गूढ़ रहस्य समाए  हुए हैं l इसके ऊपर जाने कितनी बातें कहीं गई हैं और कितने पन्ने रंगे गये हैं lइसके ऊपर जाने कितनी जिंदगियां भेंट चढ़ गई l यह ऐसा असाध्य रोग हैं, जो अगर किसी को हो जाएं तो उसका जीवन धीरे -धीरे नरक बना देता हैं l कमाल की बात यह है कि जिस से यह रोग होता है उसे पता भी नहीं चलता कि कब और कैसे धीरे -धीरे उसकी जिंदगी के सारे सुखचैन हवा हो जाते हैं l यह शक कभी अकेले नहीं आता l यह अपने साथ में अपनी सहचरी को भी लाता है l जी हां ठीक समझे! इसकी सहचरी है भय,भ्रम और क्रोध l जिस व्यक्ति को सबका असाध्य रोग लग जाता है l वह सदा भय से ग्रसित,भ्रमित और क्रोधित रहता है l हमेशा उसके मन में एक अनजाना भय बना रहता है और यही है उसे भ्रमित करते रहता है एवं उसके क्रोध को अंदर ही अंदर सुलगाते रहता है l धीरे-धीरे उसके सारे सुखचैन उसकी खुशियां इस निष्ठुर शक  की भेंट चढ़ जाती है l  स्नेक की कोशिका असाध्य रोग लगता है वह तो तन मन आत्मा से रोगी हो ही जाता है l उस व्यक्ति के साथ-साथ उसके साथ रहने वाले व्यक्ति भी इस रोग की पीड़ा और त...

नव वधू का आगमन

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शीर्षक :- नव वधू का आगमन हल्दी लगी,सेहरा सजा मेरे बेटे का l बारात सजी,हुईं शादी, पड़ी भाँवरे l  रस्मो रिवाजो से हर्षित सबका मन l हुआ घर मेरे सुभागमन नव वधू  का l जब घर में इधर-उधर जाया करती थी l छन- छन छनकती थी उसकी पायल l खन -खन खनकती थी उसकी चूड़ियाँ l रुनझुन -रुनझुन बजती थी करधनिया l घर में हर तरफ बहार सी छा गई , जब हुआ घर मेरे वधू का आगमन l समय मानो पंख लगाकर उड़ने लगा l उसकी मीठी बोली से घर गुंजनें लगा l बरस भर में पोते की किलकारियां गूंजने लगी l समय कब करवट ले ले जानता कौन भला l जिसके लिए हम भी थे उसके अपने माँ -बाप l अब हम हो गये उसके लिए बुड्ढे और बुढ़िया l हमारी जरूरतें अब बोझ बनकर रह गई l माँ -बाबूजी उसके मुँह से सुनने कान तरस गईं l जिसे हमने चाहा टूटकर बेटी की तरहा, जाने क्या अपराध हुआ हमसे, जो वह बदल गईं l जाने कब हम बरामदे के कोने में सिमट गये l नन्हा पोता हमारा बहुत बडा हो गया l बेटियां सब अपने घर ससुराल चली गई l यमपुरी ले जाने अब यमराज भी आकर खड़ा हो गया l लोकेश्वरी कश्यप जिला मुंगेली छत्तीसगढ़