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शक
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शक दो अक्षर का यह साधारण साधारण सा शब्द अपने में कितना गूढ़ रहस्य समाए हुए हैं l इसके ऊपर जाने कितनी बातें कहीं गई हैं और कितने पन्ने रंगे गये हैं lइसके ऊपर जाने कितनी जिंदगियां भेंट चढ़ गई l यह ऐसा असाध्य रोग हैं, जो अगर किसी को हो जाएं तो उसका जीवन धीरे -धीरे नरक बना देता हैं l कमाल की बात यह है कि जिस से यह रोग होता है उसे पता भी नहीं चलता कि कब और कैसे धीरे -धीरे उसकी जिंदगी के सारे सुखचैन हवा हो जाते हैं l यह शक कभी अकेले नहीं आता l यह अपने साथ में अपनी सहचरी को भी लाता है l जी हां ठीक समझे! इसकी सहचरी है भय,भ्रम और क्रोध l जिस व्यक्ति को सबका असाध्य रोग लग जाता है l वह सदा भय से ग्रसित,भ्रमित और क्रोधित रहता है l हमेशा उसके मन में एक अनजाना भय बना रहता है और यही है उसे भ्रमित करते रहता है एवं उसके क्रोध को अंदर ही अंदर सुलगाते रहता है l धीरे-धीरे उसके सारे सुखचैन उसकी खुशियां इस निष्ठुर शक की भेंट चढ़ जाती है l स्नेक की कोशिका असाध्य रोग लगता है वह तो तन मन आत्मा से रोगी हो ही जाता है l उस व्यक्ति के साथ-साथ उसके साथ रहने वाले व्यक्ति भी इस रोग की पीड़ा और त...
नव वधू का आगमन
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शीर्षक :- नव वधू का आगमन हल्दी लगी,सेहरा सजा मेरे बेटे का l बारात सजी,हुईं शादी, पड़ी भाँवरे l रस्मो रिवाजो से हर्षित सबका मन l हुआ घर मेरे सुभागमन नव वधू का l जब घर में इधर-उधर जाया करती थी l छन- छन छनकती थी उसकी पायल l खन -खन खनकती थी उसकी चूड़ियाँ l रुनझुन -रुनझुन बजती थी करधनिया l घर में हर तरफ बहार सी छा गई , जब हुआ घर मेरे वधू का आगमन l समय मानो पंख लगाकर उड़ने लगा l उसकी मीठी बोली से घर गुंजनें लगा l बरस भर में पोते की किलकारियां गूंजने लगी l समय कब करवट ले ले जानता कौन भला l जिसके लिए हम भी थे उसके अपने माँ -बाप l अब हम हो गये उसके लिए बुड्ढे और बुढ़िया l हमारी जरूरतें अब बोझ बनकर रह गई l माँ -बाबूजी उसके मुँह से सुनने कान तरस गईं l जिसे हमने चाहा टूटकर बेटी की तरहा, जाने क्या अपराध हुआ हमसे, जो वह बदल गईं l जाने कब हम बरामदे के कोने में सिमट गये l नन्हा पोता हमारा बहुत बडा हो गया l बेटियां सब अपने घर ससुराल चली गई l यमपुरी ले जाने अब यमराज भी आकर खड़ा हो गया l लोकेश्वरी कश्यप जिला मुंगेली छत्तीसगढ़