आशाओं का प्रकाश




शीर्षक - आशाओं का प्रकाश 
मेरे जलने में तेरी मुस्कुराहट देख
अपनी जलन भूल जाती हूँ मैं l
मेरा अस्तित्व है बस मामूली, बहुत ही छोटा सा l
पर तेरी प्यारी मुस्कान देख, अनमोल हो जाती हूँ मैं l



तुम हो उस अनंत की सबसे सुन्दर, प्यारी अमूल्य रचना l
उसी अनंत ज्वाला शक्ति की मात्र एक छोटी सी लौ हूँ मैं l
थोड़ा ही सही रौशनी कर, तम को तो हरती हूँ मैं l



तन मेरा कपास,मेरी प्राण शक्ति है तेल  और घी l
मेरा आधार है कच्ची मिट्टी का पक्का दीया l
जलती हूँ  मैं, तब समग्र रूप में दीया कहलाती हूँ मैं l



कोई जरूरत तो कोई खुशी के लिए मुझे जला जाता है l
उफ़ भी नहीं करती, बस चुप ही रहती हूँ l
अपना अस्तित्व मिटा कर तेरे दर पे रौशनी करती हूँ मैं l


क्या हुआ जो तेरी खुशी, मुस्कुराहट के लिए जल कर मिट गई l
खुद जलकर औरों को रौशनी बाँटने का संदेश देती हूँ मैं l
जी हाँ दीया हूँ मैं, अंधकार में आशाओं का प्रकाश भरती हूँ मैं l


(स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना )

 *लोकेश्वरी कश्यप*
*जिला मुंगेली छत्तीसगढ़*
07/11/2021

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