कभी खुशी कभी गम

कभी खुशी कभी गम 


कभी खुशी कभी गम, यही तो है जीवन के रंग l
जब हो जाता गम से अति व्याकुल मानव,
तब उठा ले यदि कोई अनुचित कदम,
हो जाता है तब उससे जु ड़ा हर जीवन बेरंग l



कभी खुशी कभी गम, यही तो है जीवन के रंग l
क्यों एक सतही दुख से दुखी हो अपना आपा खुद से खो देता,
हो जाता अनमोल जीवन से हताश, उस परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति ऐ मानव l
कर देता पागल हो, खुद के साथ अपनों का भी जीवन बेरंग l



कभी खुशी कभी गम, यही तो है जीवन के रंग l
यदि जीवन कोई गम ही ना हो तो,
हो जाएं तब जीवन पूरा कोरा कागजl
यदि हो ना कोई खुशी की चमक किसी आँख में,
तब हो जाएं गम से काला हर जीवन l
क्यू देख नहीं पाता नादान इंसान मन की आँखों से,
श्वेत श्याम रंगों में छुपे जीवन के इंद्रधनुषी रंग l


कभी खुशी कभी गम, यही तो है जीवन के रंग l
जब घिर जाओ तुम जीवन में नाउम्मीदी की काली रातो में,
तब चुप बैठ जाओ एक कोने में,
अपनी आँखे मुंद उस अँधेरे में अपनी अश्रुओं की धारा में,
विसर्जित कर दो अपनी, सारी पीड़ा, सारे गम l
जब तक बरस कर खाली ना जाएं गम के बादल l
तब इन्ही रिक्तियों में भर पाओगे तुम पुनः,
जीवन में आशाओं के चटक रंग l



कभी खुशी कभी गम, यही तो है जीवन के रंग l
यूँ ही कई बार किया है अपने को शून्य तक रिक्त,
मैंने स्व अनुभव से सीखा है जीवन में कोई ऐसा नहीं रंग,
जिसके ऊपर चढ़ सके नहीं कोई दूजा रंग l
क्योंकि जब कैनवास पूरा काला हो  जाएं,
तब ही सबसे खूबसूरत रंगीन चित्र उधरते देखा मैंने 
प्रबल उम्मीदों के चटक रंग के संग l

(स्वरचित और अप्रकाशित रचना) 

लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़
26/11/2021

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