गोदना की परम्परा

💐*हमारी परम्पराओं में निहित विज्ञान*💐


*गोदना गुदवाने की परम्परा*


 गोदना अर्थात शरीर के किसी हिस्से को बार-बार छेदन करना l गोदना प्रथा  हिंदू धर्म में लगभग सभी जातियों और जनजातियों में प्रसिद्ध रही है प्राचीन काल से l गोदना प्रथा धार्मिक,सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक रूप से हमारे शरीर व समाज का एक अभिन्न अंग बनकर रहा है l यह प्रथा आदि काल से चला आ रहा है l


*गोदने का विस्तार* 

 गोदेने की इस परंपरा का विस्तार पूरे भारत में अपनी अलग अलग नमो व प्रकारों से जानी जाती है l विदेशो में भी गोदने की परंपरा  हमें दिखाई देती है lखासकर आदिवासी जाति एवं जनजातियों में यह विशेष लोकप्रिय हैं l अलग-अलग जाति व जनजातियों में अलग-अलग प्रकार के गोदना की आकृतियां प्रचलित है l गोदने की यह आकृतियां व डिजाइन उनकी जाति व समाज की विशेष पहचान भी बन गई है l

*नाम व विशेषता* 


 गोदने को अंग्रेजी में टैटू कहा जाता है  l इसे कहीं कहीं गुदना भी कहते है l  यह काले, हल्के नीले व कुछ हरापन लिए हुए अपनी छाप शरीर के  अंगों पर छोड़ता है l वर्तमान में गोदना के लिए अलग-अलग केमिकल रंगों का उपयोग भी किया जाने लगा है जो कि शरीर के लिए काफी हानिकारक होते हैं l इनके स्थान पर जो पारंपरिक गोदने के रंग हैं वह केमिकल से रहित होते हैं l उन्हें विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों एवं पत्तों व फूलों के रसों का उपयोग करके बनाया जाता है l


 गोदने का निशान अमिट होता है l इसीलिए गोदने को अमिट श्रृंगार भी कहा जाता है l


 *धार्मिक मान्यताएं व वैज्ञानिक तथ्य*

 
*1.*  कुछ जनजातियों का मानना है कि शरीर में गोदना गोदवा ने से उन्हें किसी अन्य की नजर नहीं लगती हैं  l इसीलिए कई जनजातियों में शरीर के विभिन्न हिस्सों पर बहुत ज्यादा मात्रा में गोदना गोदवाने की प्रथा प्रचलित है l 

*तथ्य :-*
  जब किसी देश अथवा समाज में आता ताई आक्रांता ओं का आक्रमण होता था l तब उनके सैनिक अपने मनोरंजन व काम पूर्ति के लिए सुंदर लड़कियों को उठाकर ले जाते थे l अतः उन तात्कालिक समय में लोगों ने लड़कियों को गोदना गोद कर कुरूप करके उनको आता था क्योंकि नजरों में चढ़ने से बचाने के लिए यह उपक्रम किया था l

*2.* गोदना के विषय में एक मान्यता यह भी है कि गोदना गोदवा ने से शरीर बीमारियों से बच जाता है एवं अनेक बिमारिया ठीक होती है l

*तथ्य :-*
 प्राचीन काल में गोदना गोदने के लिए  जिस अमिट स्याही का प्रयोग किया जाता था lउसमें विशेष प्रकार की जड़ी बूटियों का रस मिलाकर तैयार किया जाता था l कुछ विशेष प्रकार की अस्वस्थता में शरीर के विशेष हिस्सों में सुई के माध्यम से छेदन करके इन जड़ी बूटी युक्त औषधीय रसों को शरीर में पहुंचाया जाता था जिससे कि उस बीमारी का इलाज होता था l जैसे जो बच्चे चाल नहीं सकते थे l ठीक से बोल नहीं पाते थे l क्रमशः उनके घुटनो के पीछे,गले इत्यादि गोदने के माध्यम से विशेष औषधियों को उनके इन अंगों में पहुंचाकर उनका इलाज करने का एक तरीका था l इस प्रकार की थेरेपी को आज के वर्तमान युग में एक्यूप्रेशर कहा जाता है l 

*3.* गोदना गोदवाने के पीछे तर्क एवं विभिन्न मान्यताएं हैं जैसे कि, शरीर में जितने भी गहने पहने होते हैं,मरने के बाद उन्हें उतार लिया जाता है l लेकिन एक गोदना ही है,जिसे कोई उतार नहीं सकता ना इसे छीन सकता है ना इसे हटा सकता है अतः गोदना को अमर श्रृंगारिक अलंकरण या स्वर्गीय अलंकरण भी कहा जाता है l यह भी मान्यता है कि गोदना गोदवाने से स्वर्ग में स्थान मिलता है l यह भी मान्यता प्रचलित है कि गोदना गोदवाने से भगवान प्रसन्न होते हैं एवं यह सच्चे भक्त होने की निशानी है l

*तथ्य :-*

तथ्य :- वैज्ञानिक तथ्य यह है कि गोदने की स्याही जिसे विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे एवं जड़ी बूटियों का रस मिलाकर बनाया जाता था l वह शरीर के अंदर समा कर अमित हो जाता था अतः उसे मिटाया नहीं जा सकता l लोगों को इस गोदना गोदवा ने की प्रक्रिया में अत्यंत पीड़ा से गुजरना पड़ता था अतः उन तीनों को कम करने के लिए एवं उनके मन में धार्मिक आस्था उत्पन्न करने के लिए इस प्रकार की की विधियां एवं मान्यताएं समाज में प्रचलित की गई l ताकि गोदना गोदवाने वाले व्यक्ति को मानसिक, धार्मिक और आत्मिक संबल प्रदान हो l



 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गोदना गोदने की प्रक्रिया  एक्यू पंचर की प्रक्रिया से कहीं अधिक ही है l क्योंकि एक्यूपंचर में जहां मात्र सुईया चुभा कर विभिन्न बीमारियों का उपचार किया जाता है l वही गोदने की प्रक्रिया में एक्यू पंक्चर के साथ-साथ औषधीय महत्व के तत्वों को शरीर में स्थाई तौर पर प्रवेश कराया जाता है ताकि भविष्य में होने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचा जा सके l



*निष्कर्ष :-*

 इस प्रकार से हम विभिन्न मान्यताओं को जब वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसते हैं, तो हम पाते हैं कि  हमारे पूर्वजों ने विभिन्न औषधियों का उचित और दीर्घकालिक प्रभाव शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार व बीमारियों से बचाव के लिए इसका (गोदना गोदने व गुदवाने को  परंपरा के रूप में  )उपयोग किया  l जो कि उनकी दूरदृष्टि व वैज्ञानिक सोच का बहुत सुंदर तालमेल प्रस्तुत करता है l हमें कृतज्ञ होना चाहिए अपने उन महान पूर्वजों के प्रति जिन्होंने अपने ज्ञान, शोध व अनुभवो को बुद्धिमत्ता पूर्वक परंपराओं के रूप समाज में स्थापित किया l पता हमें चाहिए कि हम किसी परंपरा का खंडन करने से पहले उसके वैज्ञानिक तथ्यों को समझने का प्रयास करें और उनका सम्मान करें एवं अपने इन परंपराओं पर गर्व करें l हमें हमारी इन परंपराओं को संरक्षित और समृद्ध बनाने की कोशिश करनी चाहिएl



🙏🏻जय हिन्द, जय भारत, जय भारतीय परम्पराएं 🙏🏻




लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली छत्तीसगढ़
27/10/2021

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