गाय का गोबर और विज्ञान

💐*हमारी परम्पराओं में निहित विज्ञान* 💐


*विषय :- गाय का गोबर और विज्ञान*

गोबर का नाम सुनते ही शहरों में सब नाक भौ सिकोड़ने लगते हैं l गाय के दर्शन से और उसके गोबर से गाँव में सुबह की शुरुआत होती है lहिन्दू धर्म में गाय को बहुत ही पवित्र पशु माना गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए गाय को पूजा जाता है। गाय के गोबर को अगर घर में इस्तेमाल किया जाए तो यह भी हिन्दू धर्म में शुभ माना जाता है। गाय के गोबर में लक्ष्मी का निवास माना गया है। इसिलए जब भी किसी भी प्रकार का कोई पूजन होता है तो उस जगह को गाय के गोबर से शुध्द किया जाता है
 हमारे धार्मिक मान्यताओं के अनुसार  गाय और गाय के शरीर का प्रत्येक  पदार्थ विशेष गुणकारी और औषधीय महत्व का माना गया है l गाँव में सभी के घरों में सुबह प्रत्येक कमरे और रसोई घर को गाय के गोबर से लिपकर उसे पवित्र व स्वच्छ किया जाता हैं  l घर के बाहर आँगन व गलियों में भी गाय के गोबर के पानी से छिड़काव कर आँगन व गलियों को स्वच्छ व पवित्र करने की परम्परा हैं l यह परम्परा आज की नहीं सदियों पुरानी हैं l ये परम्परा हमारे पूर्वजों के अनुभवों व शोधों का सुन्दर व पवित्र परिणाम है l किन्तु आज पाश्चात्य जीवन शैली व उसके अंधानुकरण के परिणाम स्वरूप यह सुन्दर, स्वच्छ और पवित्र परम्परा आज तिरस्कृत होती जा रही है l आज  के इस दमघोटु वातावरण में जहाँ इसका महत्व और सम्मान बढ़ना चाहिए था l वहीं ये परम्परा  आज  कहीं कहीं विलुप्त प्राय होता सा प्रतीत होता है l


*उपयोग*


गाँव में इसका उपयोग घर की स्वच्छता और पवित्रता के लिए किया जाता है l

गोबर के कंडे याँ उपले बनाने के लिए, जो की रसोई में खाना बनाने के लिए, जलावन में काम आटा है l यह जलने पर विशेष सुगन्ध, मध्यम आँच देता है l अतः इस्पे पकाया जाने वाला भिजय पदार्थ पुष्टिक व सुस्वादू बनता है l

पूजा में गौर - गणेश का प्रतीक बनाकर पूजा की जाती है l

पंचगव्य के रूप में उपयोग किया जाता है l

खाद  के रूप में खेतो को उर्वरा शक्ति से परिपूर्ण बनाने में इसका उपयोग किया जाता है l

गोबर गैस प्राप्त करने के लिए l
गोबर के  कई औषधीय महत्व भी माने गये है l
पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा किया जाता है।

पंचगव्य कई रोगों में लाभदायक है।

पंचगव्य द्वारा शरीर की रोग निरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर किया जाता है।

पंचगव्य से   कैंसर का इलाज किया जा सकता है lपंचगव्य के कैंसरनाशक प्रभावों पर यूएस से पेटेंट भारत ने प्राप्त किए हैं।

6 पेटेंट अभी तक गौमूत्र के अनेक प्रभावों पर प्राप्त किए जा चुके हैं।





*गोबर में उपस्थित पदार्थ*

गोबर में उपस्थित द्रव कीटाणुनाशक होता है। गाय के गोबर में 86 प्रतिशत तक द्रव पाया जाता है। गोबर में खनिजों की भी मात्रा होती है । इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैंगनीज़, लोहा, सिलिकन, ऐल्यूमिनियम, गंधक आदि कुछ अधिक मात्रा में विद्यमान रहते हैं l इसके अतिरिक्त इसमें आयोडीन, कोबाल्ट, मोलिबडिनम आदि भी थोड़ी थोड़ी मात्रा में रहते हैं। गोबर के खाद  में, अधिकांश खनिजों के कारण, यह मिट्टी को उपजाऊ बनाता है। पौधों की मुख्य आवश्यकता नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटासियम की होती है।जिसे यह पूर्ण करता है लमिट्टी को भूरभूरा बनाता है l जिससे मिट्टी में हवा का प्रवेश होता है और पौधों की जड़ें सरलता से उसमें साँस ले पाती हैं। गोबर का समुचित लाभ खाद के रूप में  प्रयोग करके पाया जा सकता है।



*धार्मिक मान्यताएं और वैज्ञानिक तथ्य*

भगवान शिव के प्रिय पत्र ‘बिल्वपत्र’ की उत्पत्ति गाय के गोबर में से ही हुई थी।

गौमूत्र और गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं।

कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है।
इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं।
गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है।
कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है।
जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद मिल जाती है l

गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है l

गाय का गोबर घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता है l


गाय के गोबर में हैजे के कीटाणुओ को खत्म करने की ताकत होती है l क्षय रोगियों को गाय के बाड़े में रखने से गोबर-गौ मूत्र का गंध से क्षय रोग के कीटाणु मर जाते है।

मरें पशु के एक सींग में गोबर भरकर भूमि में दबा कर  समाधि खाद बनाई जाती है l जो कई एकड़ भूमि के लिए उपयोगी होता है।


वैज्ञानिको के अनुसार गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है।

आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है।

गाय के गोबर में सूर्य से आने वाली खतरनाक पराबैगनी विकिरणों को सोखने व समाप्त करने की अद्भुत क्षमता होती है l

इस प्रकार से हम देखते हैं कि गाय का गोबर कितनी गुणकारी है l किंतु पाश्चात्य शैली के प्रचार-प्रसार, और अंधानुकरण की वजह से आज हमारी महत्वपूर्ण परंपराएं व संस्कृति नष्ट होती जा रही है l बिना सोचे समझे किसी भी धार्मिक परंपरा को ठेंगा दिखाना जैसे कि आजकल युवाओं का फैशन बन गया है l  परंपराओं की तह में जाएं इनके बारे में जाने समझे और इन पर गर्व महसूस करें ना कि शर्म l जो व्यक्ति गाय के संपर्क में रहते हैं एवं इसके मूत्र व गोबर के संपर्क में आते हैं व काम करते हैं l वे लोग ज्यादा स्वस्थ जीवन व्यतीत करते हैं l उन्हें बीमारियां जल्दी नहीं घेरती है l इसीलिए आपने देखा होगा कि गांव के व्यक्ति भरी जेठ की दुपहरी में भी काम करते हैं और स्वस्थ रहते l गाय को सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने वाली प्राणी माना जाता है अतः इसके संपर्क में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा से भी परिपूर्ण रहता है l 




 विनम्र निवेदन 🙏🏻 दोस्तों अपनी परंपराओं पर शर्म महसूस करने,उसे दकियानूसी कहने व उसका मजाक उड़ाने से पहले उसके बारे में जाने, समझें  और उस पर गर्व करें l स्वामी विवेकानंद ने बहुत सही कहा है कि अब समय आ गया है वेदों की ओर लौटो चलने का l

🙏🏻 जय हिंद, जय भारत🙏🏻


 लोकेश्वरी कश्यप
 जिला मुंगेली छत्तीसगढ़

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