तुम ही माझी, तुम ही पतवार


शीर्षक :- तुम ही माझी, तुम ही पतवार 


हे कृष्णा, हे प्रीतम , तूने सुन ली मेरी पुकार l
तू ही मेरा जीवन,तू ही मेरा जीवन आधार ll


मैं हूँ कस्ती, जो पड़ी थी बीच मझधार l
हे कृष्णा, तूने माझी बनकर मेरी कस्ती लगाई पार ll


फिर दुखी हूँ,व्यथित हूँ, सुन्दर ले मेरी पुकार l
हे कृष्णा,करो कृपा मुझपर हे करुणावतार ll


बेबस नहीं हूँ, लाचार नहीं हूँ, ना हूँ कमजोर l
बस एक तेरी अदद प्रेम दृष्टि की मुझे दरकार ll


सोचती हूँ क्या हूँ मैं,जानती हूँ कुछ भी तो नहीं l
तेरा कृपा जो मिल जाये मुझे, हो जाऊ मैं मालामाल ll


हे कृष्णा, बजाओ तुम फिर प्रेम मुरलिया l
हर लो नाथ, मेरा तुम जीवन संताप ll

इत देखु, उत देखु, देखु मैं चहुँ ओर l
हे कृष्णा, तेरी दया का नहीं देखु कहीं ओर -छोर ll


तेरी प्रीत समाई, मेरे कण -कण में l
हे कृष्णा, फिर क्यूँ मैं तुझे ढूँढू मधुबन में ll


तुझसे है हर गीत, तुझसे मेरे जीवन में संगीत l
तुम ही मेरी प्रीत कृष्णा, तुम ही हो मनमित ll


तुमसे ही सुबह मेरी, तुम्ही पे मेरी शाम है l
जिस पल तेरा नाम ना लूँ, उस पल को धिक्कार है ll

हे कृष्णा,अंधा क्या चाहे, दो आँखे l
तुमने मुझे अपनाया, ये तेरा उपकार है ll


 (यह रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित रचना है )

लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़
22/10/2021

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