मन के जीते जीत


 *शीर्षक :-  मन के जीते जीत l*


बाधाएं तो आती है, वह आती हैं और आती रहेंगी  l
तू डर मत, तू रूक मत,बस अपना
कर्म करते चल l
मन को बना ले सरिता, बाधाओं के बीच रास्ता बनाते चल l
क्योंकि मन के हारे हार है मन के जीते जीत l


 
जरूरी नहीं  जीवन में तुझे शीतल, मंद, सुगंधित समीर मिले l
सामने गर्म पवन, सर्द हवाएं, आंधी तूफानों के चक्रवात भी आएंगे l
तू हिम्मत न हार,मन छोटा ना कर, मन को अपने सुमेरु बना  l
क्योंकि मन के हारे हार है,मन के जीते जीत l



क्या हुआ जो तू ठोकर लगने से औरों की तरह गिर गया l
गिरने में कोई बड़ी बात नहीं, फिर से संभाल और इतिहास बना  l
जिन पत्थरों से तुझे ठोकर लगी, उन्हें ही सफलता की सीढ़ी बना  l
क्योंकि मन के हारे हार है मन के जीते जीत l


उलझनों के भंवर में, अगर फंसी है तेरी जीवन नैया l
इधर - उधर के लहरों के थपेड़े भी जब तुझे विचलित करने लगे l
तब भय छोड़ हिम्मत से कर सामना, मन को तू अपने पतवार बना l
क्योंकि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत l


जीवन एक संघर्ष है,तू इससे कब तक बचेगा और भागेगा l
हिम्मत से कर सामना, मन को कस, कर इसपर अपना वश l
अपनी सफलता की कहानी, स्वयं अपने कर्मों से तू लिख l
क्योंकि मन के हरे हार है, मन के जीते जीत l




*मौलिक और अप्रकाशित रचना*

लोकेश्वरी कश्यप
जिला  - मुंगेली, छत्तीसगढ़
19/10/2021

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