सांस्कृतिक, पुरातत्विक स्थल भोरमदेव
वैसे तो छत्तीसगढ़ में कई सांस्कृतिक और पुरातात्विक स्थल है, किंतु भोरमदेव का अपना एक विशेष ही महत्व है l यह छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर और विरासत है l भोरमदेव की तुलना खजुराहो के मंदिर से की जाती है l इसीलिए लोग भोरमदेव के मंदिर को "छत्तीसगढ़ का खजुराहो" के नाम से भी जानते हैं यह हिंदू धर्म से संबंधित है l किंतु यह हर धर्म संस्कृति के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है l भोरमदेव की बिना हमारे छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और पुरातात्विक स्थलों की सूची अधूरी रहेगी l
भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कवर्धा अर्थात कबीरधाम जिले में स्थित है l कवर्धा छत्तीसगढ़ के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है l यहां घूमने के और भी बहुत सुंदर सुंदर जगह हैं l जैसे कि सरोदा बांध, मड़वा महल, मोती महल एवं अन्य प्राकृतिक स्थानों से भरपूर यह सुंदर स्थान है l इसकी दूरी रायपुर से 125 किलोमीटर एवं कवर्धा से 18 किलोमीटर दूर है l यह कबीरधाम जिले के चौरागांव नामक स्थान में स्थित है l यह लगभग 1000 वर्ष पुराना मंदिर हैl
भोरमदेव का मंदिर नागवंशी राजा गोपाल देव के द्वारा बनवाया गया था l यह नागर शैली में बनवाया गया है l
भौगोलिक स्थिति
भोरमदेव का मंदिर चारों ओर से मैकल पर्वत श्रेणी से घिरा हुआ है l चारों ओर हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य यह भोरमदेव का मंदिर अति मनोरम दृश्य उत्पन्न करता है l इस मंदिर की एक मुख्य विशेषता यह भी है कि इस मंदिर के चारों तरफ काम क्रीड़ा उत्तेजित करने वाले मूर्तियां लगी हुई हैं l इन्हीं मूर्तियों की वजह से भोरमदेव के मंदिर की तुलना खजुराहो से की जाती है l हरी-भरी पहाड़ियों के बीच बना हुआ यह मंदिर ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का है l
इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव के द्वारा करवाया गया था l इस मंदिर के सामने एक बड़ा सा तालाब भी है l जो भी पर्यटक छत्तीसगढ़ आता है वह भोरमदेव मंदिर को अवश्य एक बार देखने आता है l भोरमदेव के मंदिर के बिना छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों का सामान अधूरा रहेगा l दूर-दूर से लोग इस मंदिर की ख्याति को सुनकर इसे देखने वह यहां घूमने आते हैं l
मान्यता
ऐसी मान्यता है की भोरमदेव गोड़ राजाओं के देवता थे l जो कि भगवान शिव का ही एक नाम है l गोड़ राजा भगवान शिव के उपासक थे l इसलिए भगवान शिव के इस मंदिर का नाम भेरमदेव पड़ा l
निर्माण काल
इस मंदिर में मिल लेख से यह पता चलता है कि इसका निर्माण काल फ़णी नागवंशी राजा गोपालदेव के शासन काल में हुआ था l यह वही समय था जब यहां कलचुरीयों का शासन था l साक्ष्य रिप्लाई में मिल लेख से इसका समय कलचुरी संवत 8.40 दिया गया है लजिसका कि अर्थ है l 10 वीडियो शताब्दी के बिच का समय l
स्थापत्य शैली
भोरमदेव मंदिर की स्थापत्य शैली, नागर स्थापत्य शैली का एक बहुत ही सुंदर उदाहरण प्रस्तुति करता है l इस मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा कि ओर है l इसमें तीन तरफ से प्रवेश किया जा सकता है अर्थात तीन द्वार है l इसके गर्भगृह में काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित है l और भी अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां गर्भगृह और बाहरी दीवार में बने है l गर्भगृह में पंचमुखी सर्प की मूर्ति भी है साथ ही यहां एक ध्यानस्थ राजपुरुष की मूर्ति भी है l इस मदिर में चारों तरफ 12 खंभे बने हुए हैं, जिन पर आकर्षक कलाकृतियाँ उकेरी गई है l जो हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचता है l बीच में 4 बड़े बड़े खंभे हैं इन पर भी सुंदर कलाकृतियां उकेरी गई हैं l इस मंदिर में शिखर नहीं है l
एक बार यहां अवश्य पधारे और इसके सांस्कृतिक, पुरातत्विक महत्व को आप स्वयं महसूस करके गौरव का अनुभव करें l
जय हिन्द, जय छत्तीसगढ़ 🙏🏻🙏🏻💐😊
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