पुनः कर दों धरा को हरि भरी
*पुनः कर दो धरा को हरी-भरी*
त्रिविध बयार बहा करती थी घर घर बसता था आनंद,
जब देने के सुख से मिलता था सबको परमानंद.
मिलता था सबको परमानंद......
जिनसे पाया हमने सदा "देने की "शिक्षा,
अपने स्वार्थ वश हमने आज उन्हें ही भुला दिया.
आज उन्हें ही भुला दिया.........
प्राथमिक उत्पादक को कभी हमने दिया नही सम्मान,
इस धरा से काट काट कर करते रहे उनका अपमान.
करते रहे उनका अपमान.........
फल फूल जड़ पत्ती तना, जिनका हर अंग बना है उपयोगी,
उनकी हत्या कर करके, आज हम बन रहे हैं रोगी.
आज हम बन रहे हैं रोगी.............
सिलेंडरों में बंद हवा के लिए, छिना झपटी कर रहे,
स्वास स्वास के लिए तरस रहे हैं.
वृक्ष अगर हमने काटे नहीं, वरन लगाये होते,
तो आज यूं बेबस अश्रु न बहाते होते.
आज यू बेबस अश्रु न बहाते होते...........
नहीं हुई है अभी देर, अब तो सुधर जाओ.
जब जागो तभी सवेरा, नींद से जागो संभल जाओ.
नींद से जागो संभल जाओ........
अभी जुट जाओ अपने प्रथम उत्पादक को बचाओ
पुनः कर दो धरा को हरियाली से भरपूर.
पेड़ लगाओ पर्यावरण स्वच्छ बनाओ.
वृक्ष लगाओ पर्यावरण स्वच्छ बनाओ.........
अपने बच्चों को दे हरी-भरी धरा का उपहार.
उन्हें समझाएं देने का सुख और उचित संस्कार.
उन्हें समझाएं देने का सुख और उचित संस्कार.............
लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली(छत्तीसगढ़ )
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