दो सहेलियाँ

दो सहेलियाँ 

वैशाली और गरिमा आज सालों बाद तीज के अवसर पर एक दूसरे से मिली.जब दोनों बाजार गई थी अपने अपने भाइयों के साथ अपनी पसंद की साड़ी खरीदने.
वैशाली गरिमा को देखते ही पहचान गई.
उसने उसे आवाज दीया " हैलो गरिमा "
गरिमा नें पलटकर देखा, अरे ये तो वैशाली है. वह बहुत खुश हो गई. अपनी प्यारी सखी को देखकर.उसने मुस्कुराके उसे उसे कहा "हैल्लो, वैशाली कैसी हो "
गरिमा नें अपने भाई का परिचय वैशाली से कराया.
"गरिमा ये मेरे बड़े भैया है "
वैशाली "नमस्ते , भैया "
भैया जी नें मुस्कुराके हाथ जोड़े "नमस्कार "
दोनों सहेलियों साथ में अपने लिए साड़ी खरीदने लगीं.
वैशाली को एक सुन्दर सी बनारसी साड़ी पसंद आई. जो बहुत भारी और काफी महंगी थी. उसके साथ उसके भैया थे जो कुछ चिंतित व असमंजस में थे. खैर इधर गरिमा नें भी अपने लिए एक सुंदर सी साड़ी खरीदी. जो शायद वैशाली को पसंद नहीं आई पर गरिमा को उसके बुआई के सामने टोकना उसे अच्छा नहीं लगा. आखिर दोनों इतने ज्यादा खुश जो थे.
दोनों सहेलियाँ तीज मनाके अपने अपने ससुराल चली गई दोनों बहुत खुश थी.
वैशाली जब अपने ससुराल वापस जा रही थी तो रास्ते में उसे गरिमा अपने भैया के साथ दिखी. वैशाली नें ड्राइवर से कार रोकने के लिए  कहा, और वह कार्य से उतरकर गरिमा के पास आई "क्या हुआ गरिमा?"
"यहां क्यों ख़डी हो? "
गरिमा "वो शायद भैया की गाड़ी की टंकी में कचड़ा आ गया है!अचानक बंद हो गई " वह परेशान सी हो रही थी.
वैशाली "तु मेरे साथ चल मैं तुझे छोड़ देती हू ", "भैया अपनी गाड़ी बनवाकर घर चले जायेंगे "
गरिमा "नहीं री " बस भैया ठीक कर लेंगें "
"तु परेशान ना हो "
भैया "तुम दोनों वहा पेड़ की छाया में बैठो तब तक मैं इसे ठीक करता हू.
गरिमा  "ठीक है भैया "
वैशाली  " भैया क्यू ना हम दोनों मेरी गाड़ी में बैठें "
भैया " हाँ हाँ, क्यू नहीं "
दोनों सहेलियाँ वैशाली की गाड़ी में बैठ गई.

वैशाली " गरिमा, तुम कितनी मुर्ख हो गई हो शादी के बाद "
गरिमा  "क्यू क्या हुआ "
वैशाली " हाथ आये अवसर को कोई कैसे छोड़ सकता है ? "
गरिमा  " क्या मतलब? मैं कुछ समझी नहीं  "
वैशाली "जब तीज पे तेरे भैया तुसे अपनी पसंद की साड़ी लेने बोले तो तु कोई महंगी और कीमती साड़ी ले सकती थी. तीज साल में एक बार ही तो आता है "
मुझे देख " मेरे भैया जो साड़ी मेरे लिए लाये थे मैंने तो उनके मुँह पर मार दिया की इससे बढ़िया साड़ी तो हमारी नौकरानी पहनती है. "मैंने तो साफ साफ उनसे कह दिया था मुझे तो मेरे पसंद की ही साड़ी लेनी है वो भी बढ़िया वाली , हाँ "
गरिमा मुस्कुरा के रह गई.उसे उस दिन उनके भैया का फीका पड़ा चेहरा याद आ गया.
गरिमा  " देख वैशाली तीज साल में एक बार आता है. "
गरिमा  नें आगे कहना शुरुआत किया " इसका इंतजार हम शादी शुदा लड़कियो और हमारे मायके में हर किसी को होता है " " तो क्या हम महंगी साड़ी के पीछे उन सारी खुशियों को बर्बाद कर दें? "
वैशाली " क्या मतलब! मैं कुछ समझी नहीं "
गरिमा  " देख वैशाली बुरा मत मानना, तुम बताओ क्या हम बहने अपने मायके इसलिए लिए आती है की हम अपने भैया और मायकेवालों पे बोझ बन जाये " 
वैशाली  "तु कहना क्या चाह रही है ? "
गरिमा  " तुझे मेरी साड़ी बहुत हल्की और सस्ती लगीं  है ना ? "
वैशाली  " हाँ "
गरिमा  "पर ये साड़ी मेरे लिए बहुत कीमती है "
वैशाली  " वो कैसे ? "
गरिमा " क्यू की इसमें मेरे भैया का प्यार, दुलार बसा है, मेरे मायके की याद जुड़ गई है "
गरिमा अपनी ही धुन में बोले जा रही थी  " जाने कितनी कोशिशो के बाद बचत कर करके मेरे भैया नें मेरे लिए तीज के शगुन का इंतजाम किया होगा, मेरे कहने से वो मुझे महंगी साड़ी दें भी देते पर फिर  वे उसके लिए और भी अपने कुछ अरमानों का गला घोंटते या अपने बीवी बच्चों की आवश्यकताओं में कटौती करते. जो उनके लिए तकलीफदेह होता, साड़ी का क्या है सस्ती हो या महंगी वो तो फट ही जायेगी, पर हमारे रिस्तो में कड़वाहत नही आणि चाहिए  "
यह तीज का उत्सव हमारे जीवन में मिठास घोलने वाली होनी चाहिए ना की कड़वी यादें दें जाये "
वैशाली  " मुझे माफ कर दें गरिमा मैंने तुझे मुर्ख कहा, अरे मुर्ख तो मैं थी जो इतनी सी बात समझ ना पाई. "  गरिमा  "देख वैशाली बहन , तीज की वजह से या कोई और त्यौहार की वजह से हमारे अपनों के साथ प्रेमभरे रिस्तो में कभी भी कड़वाहत नहीं आनी चाहिए. इन्ही रिस्तो में ही तो हमारी जिंदगी में खुशियाँ है ना की चीजों से. "
दोनों सहेलियों की आँखे नम हो चली थी. दोनों एक दूसरे का हाथ मजबूती से थामे थी. वैशाली की आँखों में पश्चाताप के आंसू देखकर गरिमा खुश थी की उसे अपनी गलती समझ में आ गई थी.

कुछ देर बाद गरिमा के भैया भी अपनी गाड़ी बनाके आ गए. गरिमा अपने ससुराल चली गई और वैशाली वापस अपने मायके,अपनी गलती सुधारने के सुखमय उम्मीद के साथ.

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लोकेश्वरी कश्यप
सहायक शिक्षक (L B)
शासकीय प्राथमिक शाला सिंगारपुर
जिला मुंगेली (छत्तीसगढ़ )
lokeshwarikashyap1980@gmail.com


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