( ECCE ) बच्चों में भाषा कौशल का विकास कैसे करें?
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*विषय :- शाला पूर्व बच्चों में भाषा कौशल का विकास*
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आज के प्रशिक्षण में बच्चों के भाषा कौशल के विकास के लिए पालनकर्ता जिसने कि अभिभावक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं शिक्षक आते हैं इनके व्यवहार एवं कार्यशैली पर तथा बच्चों पर पड़ने वाले इनके सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई.
बच्चों में जिज्ञासा एवं आसपास की चीजों को समझने और जानने की कोशिश करने का जन्मजात गुण होता है. फिर क्यों आगे चलकर कुछ बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हैं और कुछ बच्चे क्यों पिछड़ जाते हैं. इस पर विचार किया गया. बच्चों में भाषाई विकास को कैसे बढ़ाएं. ऐसी कौन कौन सी गतिविधियां की जा सकती है जो बच्चों के भाषाई विकास को बढ़ानें मैं मदद कर सकती हैं. साला पूर्व बच्चों में भाषाई विकास को विभिन्न छोटे-छोटे बिंदुओं में बैठकर हम उनके साथ बहुत अच्छी से गतिविधि कर कर उनके भाषाई कौशल के विकास में मदद कर सकते हैं. कुछ बिंदु इस प्रकार से हैं :-
👉 बच्चों के साथ बातचीत या गपशप :- बच्चों के साथ समूह में और व्यक्तिगत रूप से भी बात करना चाहिए. व्यक्तिगत बातचीत करने से बच्चों को स्पेशल फील होता है और वह खुश होकर बात करते हैं. वही सामूहिक रूप से बातचीत करने पर बच्चे समूह में अपने दोस्तों को बातचीत करते हुए देख कर बात करने के लिए अपनी बात रखने के लिए प्रोत्साहित होते हैं.
👉 कविताएं और बाल गीत :- जब हम बच्चों के लायक कविताएं और बालगीत उनको सुनाते हैं और उन्हें भी साथ में जाने के लिए कहते हैं तो उन्हें इससे बहुत आनंद आता है साथ ही इन गीतों में कुछ शब्दों को बार-बार दोहराया जाता है. बच्चों के बाल गीत तुकांत वाले होते हैं जिससे कि कविता और और गीत उन्हें अच्छा लगता है और उन्हें जल्दी याद होते हैं. बच्चों को जिन शब्दों में उच्चारण सही नहीं होता है अगर ऐसे शब्दों को हम बाल गीतों में और कविताओं में बोले तो बच्चे कविता गाते गाते हुए शब्द को बहुत ही आसानी से सीख जाते हैं.
👉 चित्र व कहानियां:- बच्चों को कहानियां सुनना बहुत अच्छा लगता है और यदि कहानी चित्र वाली हो तब तो सोने पर सुहागा हो जाता है. बच्चों को चित्र दिखाकर उनसे उसके बारे में बात करनी चाहिए. उनसे पूछना चाहिए कि इस कहानी में क्या हो रहा है इस चित्र में क्या हो रहा है जिससे कि एक छोटी सी प्यारी सी कहानी बच्चों के लायक बन जाती है उनके ही शब्दों में. इससे उनके भाषाई विकास भी होता है. यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर बच्चा कोई वाक्य गलत बोल रहा है कहने का मतलब है कि अगर कोई व्याकरणिक त्रुटि कर रहा है तो उसकी बात पूरी हो जाने दे उसके बाद उसे बताया जा सकता है कि इसे हम इस तरह से बोले तो ज्यादा बेहतर लगता है. प्रकार बिना उनको शर्मिंदा किए हम उनकी गलतियों को सुधार सकते हैं.
👉 बच्चों को ऐसी छोटी-छोटी गतिविधियां दे जिनके करने से उनकी हाथों आंखों एवं मस्तिष्क के बीच समन्वय स्थापित हो पाए.
👉 विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को दिखा कर पूछ सकते हैं इसका नाम क्या है यह किस काम आता है इसका उपयोग हम कैसे करते हैं या कहां मिलता है क्या आपके घर में यह है इत्यादि. ऐसे वस्तुओं को दिखाएं एवं उनके बारे में चर्चा करें जो बच्चों के लिए अर्थपूर्ण हो अर्थात जो उनके परिवेश से हो जो उनके आस पास उपलब्ध हो जिनके बारे में उनके पूर्व अनुभव हो.
बच्चों को बोलने का अवसर देना वह उनके साथ चर्चा करना बच्चों को भाषाई दृष्टि से समृद्ध करने का बेहतरीन उपाय हैं. बच्चों में दो चीजें या क्षमताएं विपुल मात्रा में होती हैं.
👉 1. बच्चे तीव्र गति से सीखते हैं.
👉 2. बच्चों के पास जिज्ञासा का विपुल भंडार होता है.
अभिभावक शिक्षक एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को चाहिए कि बच्चों को विभिन्न नए नए अवसर वह अवधारणाएं उपलब्ध कराएं बच्चों को सीखने के लिए एवं उनकी भाषा ही कौशल के विकास के लिए. बच्चों के साथ बात करें अभी क्या कर रहे हैं क्या बना रहे हैं क्या सोच रहे हैं इत्यादि. जिससे कि उन्हें अच्छा लगे और वे अपनी जिज्ञासाओं को आपके सामने रखने के लिए प्रेरित हो. अगर बच्चा आपसे कोई प्रश्न करता है अथवा कोई जिज्ञासा प्रदर्शित करता है तो हमें चाहिए कि बच्चे की जिज्ञासा का सम्मान करते हुए उसके प्रश्न को सुनें एवं उनकी जिज्ञासा का समाधान करें. हम स्वयं सही उच्चारण करें एवं बच्चों को भी सही उच्चारण के लिए प्रोत्साहित करें. अगर बच्चा किसी वाक्य या शब्दों को बोलने में त्रुटि करता है तो उसे उसकी बात पूरी हो जाने के बाद समझाएं कि इसको इस प्रकार से भी बोल सकते हैं. ताकि बचा शर्मिंदगी महसूस ना करें और अपनी गलतियों को भी सुधार सकें.
पूर्व प्राथमिक स्तर पर भाषा के निम्न पहलू होते हैं.
👉 सुनना
👉 बोलना
👉 पढ़ना
👉 लिखना
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शाला पूर्व बच्चे बहुत उत्सुक होते हैं नहीं भी चीजें सुनने और जाने के लिए उनके पास जिज्ञासा का विपुल भंडार होता है. अगर बच्चों को अवसर मिले तो भी बहुत सारे सवाल पूछते हैं क्या है क्यों है इसका क्या करते हैं इत्यादि. लेकिन उनके सामने समस्या तब आती है जब पालनकर्ता उन्हें सम्मान नहीं देते. चुप रहने के लिए कहा जाता है.डांट दिया जाता है. या कोई बहाना बना दिया जाता है. इससे बच्चों को गुस्सा तो आता है साथ ही साथ उन्हें निराशा भी होती है. उन्हें लगता है कि उनकी बातों का बड़ों के लिए कोई महत्व नहीं. जो बोलते हैं वह बेकार है. जो सोचते हैं जो बताते हैं वह निरर्थक है. वे हतोत्साहित हो जाते हैं. और धीरे-धीरे प्रश्न पूछना बंद कर देते हैं. अपने विचारों को दूसरों के साथ बांटना भी उन्हें अच्छा नहीं लगता. भी हीन भावना के शिकार हो जाते हैं एवं उनका आत्मविश्वास बहुत कम हो जाता है. जिससे कि आने वाला समय उनके लिए हां सारी चुनौतियां लेकर आता है और वह निरंतर पीछे पीछे पीछे होता चला जाता. वहां चुनौतियों से धीरे-धीरे भयभीत होने लगता है. इन सब नकारात्मक प्रभावों के कारण बच्चों के भाषाई विकास में बाधा पहुंचती है. इसके साथ ही बच्चों के सीखने की क्षमता भी प्रभावित होती हैं.
अतः हमें पूर्व प्राथमिक शाला के बच्चों के साथ बातचीत करते समय निम्नलिखित बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए.
👉 बच्चों को बोलने की अधिक से अधिक अवसर प्रदान करें.
👉 उन्हें प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करें.
👉 बच्चों की जिज्ञासा का सम्मान करें एवं समाधान भी करें.
👉 बच्चों से बातचीत स्वभाविक होना चाहिए ना की यांत्रिक कहने का अर्थ यह है कि बच्चों के केवल हां और ना में उत्तर देने के लिए ना कहें बल्कि विस्तृत रूप से उसका उत्तर देने के लिए कहें.
👉 बातचीत के लिए ऐसे विषयों का चयन करें जो उनकी जानकारी के हो. जिनके बारे में बच्चों के अपने पूर्व अनुभव हो. जिनके बारे में भी अच्छे से बता सके.
👉 बच्चों के साथ सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से भी बातचीत किया जा सकता है. बच्चों को किसी खास विषय पर आपस में बात करने का अवसर दें.
👉 सबसे बड़ी बात उनके बातों का उनकी अभिव्यक्ति को महत्व देना.
👉 बच्चों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अनुभूति और अभिव्यक्ति के अवसर दें.
👉चित्र बनाने के लिए कहे एवं चित्र पर बात करें.
👉 विभिन्न गतिविधियों के लिए बच्चों के जान पहचान के उनसे संदर्भित. तथा संदर्भत विषयवस्तु का चयन करें.
👉 बच्चों का उत्साहवर्धन अवश्य करें कि उसने बहुत अच्छा प्रयास किया.
इस प्रकार से बच्चों के भाषाई क्षमता का विकास अभिव्यक्ति के साथ-साथ अन्य सभी विषयों के लिए महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है. अतः बच्चों में भाषाई विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. साथी एक विशेष पुस्तक का भी जिक्र किया गया जो बच्चों के भाषाई विकास एवं अध्यापक अनुभव व गतिविधियों पर आधारित हैं.
*पुस्तक का नाम:-" बच्चे की भाषा और अध्यापक"*
*लेखक:- डॉ कृष्ण कुमार*
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*लोकेश्वरी कश्यप*
*जिला मुंगेली*
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